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"जी ही लेती है/ चंद्र रेखा ढडवाल" के अवतरणों में अंतर

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उजाले / अँधेरे से
 
उजाले / अँधेरे से
 
लुका-छिपी करती
 
लुका-छिपी करती
सब कुछ
+
सब कुछ को बस
को बस
+
 
 
छू कर निकल जाती
 
छू कर निकल जाती
  
 
पानी पर बनी लकीरें मिटाती
 
पानी पर बनी लकीरें मिटाती
और भी
+
औरत भी
जी ही लेती है
+
जी ही लेती है.
  
 
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08:07, 17 जुलाई 2010 के समय का अवतरण

सुबह को
कुछ और सुबह करते
रात को
कुछ और गहराते
मर्द जीता है
सब कुछ के बीच में से
गुज़रते हुए इत्मिनान से
 ***
उजाले / अँधेरे से
लुका-छिपी करती
सब कुछ को बस

छू कर निकल जाती

पानी पर बनी लकीरें मिटाती
औरत भी
जी ही लेती है.