"ज़िन्दगी और मौत / नवीन जोशी ’नवेंदु’" के अवतरणों में अंतर
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+ | ज़िन्दगी और मौत | ||
हैं नदी के दो किनारे | हैं नदी के दो किनारे | ||
− | + | बिना पूरी नदी पार किए | |
− | बिना पूरी नदी पार | + | |
− | + | ||
या कूद कर नहीं मिल सकते दोनों | या कूद कर नहीं मिल सकते दोनों | ||
एक दूसरे के प्रेमी दिन भर | एक दूसरे के प्रेमी दिन भर | ||
− | |||
एक दूसरे को दूर से ही | एक दूसरे को दूर से ही | ||
− | |||
देख-देख कर | देख-देख कर | ||
− | |||
बुझाते है प्यास। | बुझाते है प्यास। | ||
− | |||
पर रात में जब सब सो जाते हैं | पर रात में जब सब सो जाते हैं | ||
− | |||
दोनों मिलते हैं | दोनों मिलते हैं | ||
− | |||
लोग कहते हैं- | लोग कहते हैं- | ||
− | |||
हम सो रहे हैं। | हम सो रहे हैं। | ||
− | + | वह एक दूसरे को बाँहों में भरते हैं | |
− | वह एक दूसरे को | + | |
− | + | ||
लाड़-प्यार करते हैं | लाड़-प्यार करते हैं | ||
जाने किस-किस लोक में | जाने किस-किस लोक में | ||
− | + | जहाँ न अकेले जीवन जा सकता है | |
− | + | ||
− | + | ||
और न मौत | और न मौत | ||
− | + | वहाँ घूमते हैं। | |
− | + | ||
− | + | ||
लोग कहते हैं- | लोग कहते हैं- | ||
− | |||
हम सपने देख रहे हैं। | हम सपने देख रहे हैं। | ||
− | |||
घूमते-फिरते | घूमते-फिरते | ||
− | |||
कब रात बीत जाती है | कब रात बीत जाती है | ||
− | |||
पता ही नहीं चलता, | पता ही नहीं चलता, | ||
− | |||
वे एक दूसरे को छोड़ना ही नहीं चाहते | वे एक दूसरे को छोड़ना ही नहीं चाहते | ||
− | + | इस समय लोग जगना ही नहीं चाहते। | |
− | इस समय लोग जगना | + | |
− | + | ||
फिर जिस दिन सहा नहीं जाता | फिर जिस दिन सहा नहीं जाता | ||
− | + | ज़िन्दगी मौत के पास पहुँच जाती है | |
− | + | ||
− | + | ||
या मौत ही | या मौत ही | ||
− | + | ज़िन्दगी को ले जाने आ जाती है। | |
− | + | ||
− | + | ||
जन्म-जन्म के | जन्म-जन्म के | ||
− | |||
दुनियां के सबसे बड़े प्रेमी | दुनियां के सबसे बड़े प्रेमी | ||
− | |||
मिल कर एक हो जाते हैं | मिल कर एक हो जाते हैं | ||
− | + | ख़ुशी इतनी हो जाती है | |
− | + | कि आँखों से आँसू झरने लगते हैं। | |
− | कि | + | |
− | + | ||
लोग भी रोने लगते हैं | लोग भी रोने लगते हैं | ||
− | |||
फूल चढ़ाते हैं उनके मिलन पर। | फूल चढ़ाते हैं उनके मिलन पर। | ||
− | |||
युग-युगों तक | युग-युगों तक | ||
− | |||
फिर रहते हैं वो साथ | फिर रहते हैं वो साथ | ||
− | |||
पर मिलना-बिछुड़ना दुनिया का नियम | पर मिलना-बिछुड़ना दुनिया का नियम | ||
− | + | एक दिन मौत नाराज़ हो | |
− | एक दिन मौत | + | |
− | + | ||
छोड़ देती है जीवन का साथ | छोड़ देती है जीवन का साथ | ||
− | + | रोने लगती है ज़िन्दगी | |
− | रोने लगती है | + | |
− | + | ||
रोते-रोते भी | रोते-रोते भी | ||
− | |||
बिछुड़ना पड़ता है उसे मौत से | बिछुड़ना पड़ता है उसे मौत से | ||
जाना पड़ता है | जाना पड़ता है | ||
− | |||
नऐ वस्त्र पहन | नऐ वस्त्र पहन | ||
− | + | नई दुनिया में | |
− | नई | + | |
− | + | ||
बन कर नई काया। | बन कर नई काया। | ||
− | + | वहाँ मिलती है उसे | |
− | + | ||
मौत की जुड़वा बहन `माया´ | मौत की जुड़वा बहन `माया´ | ||
− | |||
उसी की तरह | उसी की तरह | ||
− | |||
दिखने वाली, | दिखने वाली, | ||
− | |||
उसे वही समझ | उसे वही समझ | ||
− | |||
लग जाता है वह | लग जाता है वह | ||
− | |||
उसी के पीछे। | उसी के पीछे। | ||
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ज्यूनि अर मौत | ज्यूनि अर मौत | ||
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छन गाड़ाक द्वि किना्र | छन गाड़ाक द्वि किना्र | ||
− | |||
बिन पुरि गाड़ तरि | बिन पुरि गाड़ तरि | ||
− | |||
फटक मारि नि मिलि सकन द्वियै | फटक मारि नि मिलि सकन द्वियै | ||
− | |||
ए दुसरा्क पिरेमी दिन भर | ए दुसरा्क पिरेमी दिन भर | ||
− | |||
ए दुसा्र कैं टाड़ै बै | ए दुसा्र कैं टाड़ै बै | ||
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निमूनीं तीस चै-चै | निमूनीं तीस चै-चै | ||
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पर रात में जब सब सिति जा्नीं | पर रात में जब सब सिति जा्नीं | ||
− | |||
द्वियै मिलनीं | द्वियै मिलनीं | ||
− | |||
मैंस कूनीं- | मैंस कूनीं- | ||
− | |||
हम नींन गा्ड़नयां। | हम नींन गा्ड़नयां। | ||
− | |||
उं ए दुसा्र कैं भेटनीं | उं ए दुसा्र कैं भेटनीं | ||
− | |||
अंग्वाल खितनीं | अंग्वाल खितनीं | ||
− | |||
लाड़ करनीं-प्यार करनीं | लाड़ करनीं-प्यार करनीं | ||
− | |||
जांणि को-को लोकन में | जांणि को-को लोकन में | ||
− | |||
जां इकलै न ज्यूनि जै सकें | जां इकलै न ज्यूनि जै सकें | ||
− | |||
न मौत | न मौत | ||
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वां घुमनीं, | वां घुमनीं, | ||
− | |||
मैंस कूनीं- | मैंस कूनीं- | ||
− | |||
हम स्वींण द्यखनयां। | हम स्वींण द्यखनयां। | ||
− | |||
घुमनै-फेरीनै | घुमनै-फेरीनै | ||
− | |||
कब रात ब्यै जैं | कब रात ब्यै जैं | ||
− | |||
पत्तै न चलन | पत्तै न चलन | ||
− | |||
उं ए दुसा्र कैं छोड़नै न चान | उं ए दुसा्र कैं छोड़नै न चान | ||
− | |||
मैंस य बखत बिजण न चान। | मैंस य बखत बिजण न चान। | ||
− | |||
फिर जदिन अथांणि है जें | फिर जदिन अथांणि है जें | ||
− | |||
ज्यूनि मौता्क तिर पुजि जैं | ज्यूनि मौता्क तिर पुजि जैं | ||
− | |||
कि मौतै... | कि मौतै... | ||
− | |||
ज्यूंनि कैं ल्हिजांण हुं ऐ जैं। | ज्यूंनि कैं ल्हिजांण हुं ऐ जैं। | ||
− | |||
जनम-जनमा्क | जनम-जनमा्क | ||
− | |||
दुणिया्क सबूं है ठुल पिरेमी | दुणिया्क सबूं है ठुल पिरेमी | ||
− | |||
मिलि जा्नीं | मिलि जा्नीं | ||
− | |||
इकमही जा्नीं | इकमही जा्नीं | ||
− | |||
खुसि इतू है जैं | खुसि इतू है जैं | ||
− | |||
डाड़ ऐ जैं | डाड़ ऐ जैं | ||
− | |||
मैंस लै डाड़ मारंण भैटनीं | मैंस लै डाड़ मारंण भैटनीं | ||
− | |||
फूल चड़ूनीं उना्र मिलंण पा्रि। | फूल चड़ूनीं उना्र मिलंण पा्रि। | ||
− | |||
जुग-जुगन तलक | जुग-जुगन तलक | ||
− | |||
रूनीं फिरि उं दगड़ै | रूनीं फिरि उं दगड़ै | ||
− | |||
पर, मिलंण-बिछुड़ंण | पर, मिलंण-बिछुड़ंण | ||
− | |||
दुणियौ्क नियम... | दुणियौ्क नियम... | ||
− | |||
ए दिन मौत रिसै बेर | ए दिन मौत रिसै बेर | ||
− | |||
छ्वेणि दिं ज्यूनिक दगड़, | छ्वेणि दिं ज्यूनिक दगड़, | ||
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डाड़ मारंण फैटि जें ज्यूंनि | डाड़ मारंण फैटि जें ज्यूंनि | ||
− | |||
डाड़ मारंन-मारनै | डाड़ मारंन-मारनै | ||
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बिछुड़ण पड़ूं मौत बै | बिछुड़ण पड़ूं मौत बै | ||
− | |||
जांण पड़ूं | जांण पड़ूं | ||
− | |||
नई लुकुण पैरि | नई लुकुण पैरि | ||
− | |||
नईं दुनीं में, | नईं दुनीं में, | ||
− | |||
बंणि बेर नई काया | बंणि बेर नई काया | ||
− | |||
वां मिलें उकें | वां मिलें उकें | ||
− | |||
मौतैकि जौंया बैंणि माया | मौतैकि जौंया बैंणि माया | ||
− | |||
वीकि´ई चारि | वीकि´ई चारि | ||
− | |||
द्येखींण चांण... | द्येखींण चांण... | ||
− | |||
उकें वी समझि | उकें वी समझि | ||
− | |||
लागि जैं उ | लागि जैं उ | ||
− | |||
वीकि पिछाड़ि। | वीकि पिछाड़ि। | ||
+ | </poem> |
01:54, 6 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
|
ज़िन्दगी और मौत
हैं नदी के दो किनारे
बिना पूरी नदी पार किए
या कूद कर नहीं मिल सकते दोनों
एक दूसरे के प्रेमी दिन भर
एक दूसरे को दूर से ही
देख-देख कर
बुझाते है प्यास।
पर रात में जब सब सो जाते हैं
दोनों मिलते हैं
लोग कहते हैं-
हम सो रहे हैं।
वह एक दूसरे को बाँहों में भरते हैं
लाड़-प्यार करते हैं
जाने किस-किस लोक में
जहाँ न अकेले जीवन जा सकता है
और न मौत
वहाँ घूमते हैं।
लोग कहते हैं-
हम सपने देख रहे हैं।
घूमते-फिरते
कब रात बीत जाती है
पता ही नहीं चलता,
वे एक दूसरे को छोड़ना ही नहीं चाहते
इस समय लोग जगना ही नहीं चाहते।
फिर जिस दिन सहा नहीं जाता
ज़िन्दगी मौत के पास पहुँच जाती है
या मौत ही
ज़िन्दगी को ले जाने आ जाती है।
जन्म-जन्म के
दुनियां के सबसे बड़े प्रेमी
मिल कर एक हो जाते हैं
ख़ुशी इतनी हो जाती है
कि आँखों से आँसू झरने लगते हैं।
लोग भी रोने लगते हैं
फूल चढ़ाते हैं उनके मिलन पर।
युग-युगों तक
फिर रहते हैं वो साथ
पर मिलना-बिछुड़ना दुनिया का नियम
एक दिन मौत नाराज़ हो
छोड़ देती है जीवन का साथ
रोने लगती है ज़िन्दगी
रोते-रोते भी
बिछुड़ना पड़ता है उसे मौत से
जाना पड़ता है
नऐ वस्त्र पहन
नई दुनिया में
बन कर नई काया।
वहाँ मिलती है उसे
मौत की जुड़वा बहन `माया´
उसी की तरह
दिखने वाली,
उसे वही समझ
लग जाता है वह
उसी के पीछे।
मूल कुमाउनी पाठ
ज्यूनि अर मौत
छन गाड़ाक द्वि किना्र
बिन पुरि गाड़ तरि
फटक मारि नि मिलि सकन द्वियै
ए दुसरा्क पिरेमी दिन भर
ए दुसा्र कैं टाड़ै बै
निमूनीं तीस चै-चै
पर रात में जब सब सिति जा्नीं
द्वियै मिलनीं
मैंस कूनीं-
हम नींन गा्ड़नयां।
उं ए दुसा्र कैं भेटनीं
अंग्वाल खितनीं
लाड़ करनीं-प्यार करनीं
जांणि को-को लोकन में
जां इकलै न ज्यूनि जै सकें
न मौत
वां घुमनीं,
मैंस कूनीं-
हम स्वींण द्यखनयां।
घुमनै-फेरीनै
कब रात ब्यै जैं
पत्तै न चलन
उं ए दुसा्र कैं छोड़नै न चान
मैंस य बखत बिजण न चान।
फिर जदिन अथांणि है जें
ज्यूनि मौता्क तिर पुजि जैं
कि मौतै...
ज्यूंनि कैं ल्हिजांण हुं ऐ जैं।
जनम-जनमा्क
दुणिया्क सबूं है ठुल पिरेमी
मिलि जा्नीं
इकमही जा्नीं
खुसि इतू है जैं
डाड़ ऐ जैं
मैंस लै डाड़ मारंण भैटनीं
फूल चड़ूनीं उना्र मिलंण पा्रि।
जुग-जुगन तलक
रूनीं फिरि उं दगड़ै
पर, मिलंण-बिछुड़ंण
दुणियौ्क नियम...
ए दिन मौत रिसै बेर
छ्वेणि दिं ज्यूनिक दगड़,
डाड़ मारंण फैटि जें ज्यूंनि
डाड़ मारंन-मारनै
बिछुड़ण पड़ूं मौत बै
जांण पड़ूं
नई लुकुण पैरि
नईं दुनीं में,
बंणि बेर नई काया
वां मिलें उकें
मौतैकि जौंया बैंणि माया
वीकि´ई चारि
द्येखींण चांण...
उकें वी समझि
लागि जैं उ
वीकि पिछाड़ि।