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"जब इरादा करके हम निकले हैं मंज़िल की तरफ़/ सतपाल 'ख़याल'" के अवतरणों में अंतर

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ग़ज़ल
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जब इरादा करके हम निकले हैं मंज़िल की तरफ़
 
जब इरादा करके हम निकले हैं मंज़िल की तरफ़
खुद ही तूफ़ाँ ले गया कश्ती को साहिल की तरफ़
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ख़ुद  ही तूफ़ाँ ले गया कश्ती को साहिल की तरफ़
  
बिजलियाँ चमकी तो हमको रास्ता दिखने लगा
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बिजलियाँ चमकीं तो हमको रास्ता दिखने लगा
हम अँधेरे में बढ़े ऐसे भी मंज़िल की तरफ
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हम अँधेरे में बढ़े ऐसे भी मंज़िल की तरफ़्
  
 
क्या जुनूँ पाला है लहरों ने अजब पूछो इन्हें
 
क्या जुनूँ पाला है लहरों ने अजब पूछो इन्हें
क्यों चली हैं शौक़ से मिटने ये साहिल की तरफ
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क्यों चली हैं शौक़ से मिटने ये साहिल की तरफ़
  
फैसला मक़तूल के हक़ मे नहीं होगा कभी
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फ़ैसला मक़तूल के हक़ में नहीं होगा कभी
ये वकालत और मुन्सिफ़ सब हैं कातिल की तरफ
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ये वक़ालत और मुंसिफ़, सब हैं क़ातिल की तरफ़
  
 
है अँधेरी कोठरी मे नूर की खिड़की 'ख़याल'
 
है अँधेरी कोठरी मे नूर की खिड़की 'ख़याल'
आँख अपनी बंद करके देख तो दिल की तरफ
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आँख अपनी बंद करके देख तो दिल की तरफ़
  
  
 
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09:47, 4 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण

 

जब इरादा करके हम निकले हैं मंज़िल की तरफ़
ख़ुद ही तूफ़ाँ ले गया कश्ती को साहिल की तरफ़

बिजलियाँ चमकीं तो हमको रास्ता दिखने लगा
हम अँधेरे में बढ़े ऐसे भी मंज़िल की तरफ़्

क्या जुनूँ पाला है लहरों ने अजब पूछो इन्हें
क्यों चली हैं शौक़ से मिटने ये साहिल की तरफ़

फ़ैसला मक़तूल के हक़ में नहीं होगा कभी
ये वक़ालत और मुंसिफ़, सब हैं क़ातिल की तरफ़

है अँधेरी कोठरी मे नूर की खिड़की 'ख़याल'
आँख अपनी बंद करके देख तो दिल की तरफ़