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"नदी /शांति सुमन" के अवतरणों में अंतर

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उसके अनुभव गढ़े शब्द हमें जगाते हैं
 
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हमारे लिये
 
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नदी सूख भी जाएगी तो नदी होगी
 
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चिड़िया जाएगी उसके पास
 
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पेड़ बदल नहीं लेंगे जगह-खड़े रहेंगे
 
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उसके किनारे, भाग नहीं जाएंगे उसकी
 
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बगल के मंदिक के देवता
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कोई छीन नहीं लेगा नदी से नदीपन ।
 
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12:25, 10 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण

पानी नहीं है तो क्या
नदी तो है
अभी बरसे बादल या आए बाढ़
तो भर जाएगी नदी
अपनी दादी की तरह

दादी बूढ़ी है, कमज़ोर है तो क्या
दादी तो है
दादी है तो पिता को अहसास है कि उनकी माँ है
दादी है तो हाँक लगाती है दिनभर-
दूध पी लो, नाश्ता तैयार है, खाना लग गया है
अरे, यह आधा खाना खाकर किसने छोड़ दिया,
कौन अभी तक नहीं आया
दादी है तो डाँटती है - इतना नहीं खेलो
कभी देर तक खेलकर आने पर दरवाजा
नहीं खोलती, गुस्सा होती है
फिर वही खोल देती है दरवाजा

उसके अनुभव गढ़े शब्द हमें जगाते हैं
दादी है तो यह सब है
टेबुल से गिर जाती हैं पेन्सिलें, रबर या
किताबें तो दादी उठाती है
खाली पैर चलो तो अप्रसन्न हो जाती है
किताबों के पन्नों की तरह खुले होते हैं उसके दुख
और शब्दों की तरह छपी होती है उसकी खुशी
हवा का एक हल्का झोंका है उसका गुस्सा
शहद में लिपटी हुई उसकी ममता
तुलसी के पत्तों सा गमकता उसका स्नेह
आँखों की नींद और खुशी के सपने हैं
हमारे लिये

नदी सूख भी जाएगी तो नदी होगी
चिड़िया जाएगी उसके पास
पेड़ बदल नहीं लेंगे जगह-खड़े रहेंगे
उसके किनारे, भाग नहीं जाएंगे उसकी
बगल के मंदिर के देवता
कोई छीन नहीं लेगा नदी से नदीपन ।


27 फरवरी, 2007