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"काँटे अनियारे लिखता हूँ / श्रीकृष्ण सरल" के अवतरणों में अंतर

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अपने गीतों से गंध बिखेरूँ मैं कैसे
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मैं फूल नहीं काँटे अनियारे लिखता हूँ।
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मैं लिखता हूँ मँझधार, भँवर, तूफान प्रबल
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मैं नहीं कभी निश्चेष्ट किनारे लिखता हूँ।
  
अपने गीतों से गंध बिखेरूँ मैं कैसे<br>
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मैं लिखता उनकी बात, रहे जो औघड़ ही
मैं फूल नहीं काँटे अनियारे लिखता हूँ।<br>
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जो जीवन-पथ पर लीक छोड़कर चले सदा,
मैं लिखता हूँ मँझधार, भँवर, तूफान प्रबल<br>
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जो हाथ जोड़कर, झुककर डरकर नहीं चले
मैं नहीं कभी निश्चेष्ट किनारे लिखता हूँ।<br><br>
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जो चले, शत्रु के दाँत तोड़कर चले सदा।
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मैं गायक हूँ उन गर्म लहू वालों का ही
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जो भड़क उठें, ऐसे अंगारे लिखता हूँ
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मैं फूल नहीं काँटे अनियारे लिखता हूँ।।
  
मैं लिखता उनकी बात, रहे जो औघड़ ही<br>
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हाँ वे थे जिनके मेरु-दण्ड लोहे के थे
जो जीवन–पथ पर लीक छोड़कर चले सदा,<br>
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जो नहीं लचकते, नहीं कभी बल खाते थे,
जो हाथ जोड़कर, झुककर डरकर नहीं चले<br>
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उनकी आँखों में स्वप्न प्यार के पले नहीं
जो चले, शत्रु के दाँत तोड़कर चले सदा।<br>
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जब भी आते, बलिदानी सपने आते थे।
मैं गायक हूँ उन गर्म लहू वालों का ही<br>
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मैं लिखता उनकी शौर्य-कथाएँ लिखता हूँ
जो भड़क उठें, ऍसे अंगारे लिखता हूँ।<br>
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उनके तेवर के तेज दुधारे लिखता हूँ
मैं फूल नहीं काँटे अनियारे लिखता हूँ।।<br><br>
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मैं फूल नहीं काँटे अनियारे लिखता हूँ।।
  
हाँ वे थे जिनके मेरु–दण्ड लोहे के थे<br>
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जो देश-धरा के लिए बहे, वह शोणित है
जो नहीं लचकते, नहीं कभी बल खाते थे,<br>
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अन्यथा रगों में बहने वाला पानी है,
उनकी आँखों में स्वप्न प्यार के पले नहीं<br>
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इतिहास पढ़े या लिखे, जवानी वह कैसे
जब भी आते, बलिदानी सपने आते थे।<br>
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इतिहास स्वयं बन जाए, वही जवानी है।
मैं लिखता उनकी शौर्य–कथाएँ लिखता हूँ<br>
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मैं बात न लिखता पानी के फव्वारों की
उनके तेवर के तेज दुधारे लिखता हूँ।<br>
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जब लिखता शोणित के फव्वारे लिखता हूँ
मैं फूल नहीं काँटे अनियारे लिखता हूँ।।<br><br>
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मैं फूल नहीं काँटे अनियारे लिखता हूँ।
 
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जो देश–धरा के लिए बहे, वह शोणित है<br>
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अन्यथा रगों में बहने वाला पानी है,<br>
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इतिहास पढ़े या लिखे, जवानी वह कैसे<br>
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इतिहास स्वयं बन जाए, वही जवानी है।<br>
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मैं बात न लिखता पानी के फव्वारों की<br>
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जब लिखता शोणित के फव्वारे लिखता हूँ।<br>
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मैं फूल नहीं काँटे अनियारे लिखता हूँ।<br><br>
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21:37, 29 अगस्त 2023 के समय का अवतरण

 अपने गीतों से गंध बिखेरूँ मैं कैसे
मैं फूल नहीं काँटे अनियारे लिखता हूँ।
मैं लिखता हूँ मँझधार, भँवर, तूफान प्रबल
मैं नहीं कभी निश्चेष्ट किनारे लिखता हूँ।

मैं लिखता उनकी बात, रहे जो औघड़ ही
जो जीवन-पथ पर लीक छोड़कर चले सदा,
जो हाथ जोड़कर, झुककर डरकर नहीं चले
जो चले, शत्रु के दाँत तोड़कर चले सदा।
मैं गायक हूँ उन गर्म लहू वालों का ही
जो भड़क उठें, ऐसे अंगारे लिखता हूँ
मैं फूल नहीं काँटे अनियारे लिखता हूँ।।

हाँ वे थे जिनके मेरु-दण्ड लोहे के थे
जो नहीं लचकते, नहीं कभी बल खाते थे,
उनकी आँखों में स्वप्न प्यार के पले नहीं
जब भी आते, बलिदानी सपने आते थे।
मैं लिखता उनकी शौर्य-कथाएँ लिखता हूँ
उनके तेवर के तेज दुधारे लिखता हूँ
मैं फूल नहीं काँटे अनियारे लिखता हूँ।।

जो देश-धरा के लिए बहे, वह शोणित है
अन्यथा रगों में बहने वाला पानी है,
इतिहास पढ़े या लिखे, जवानी वह कैसे
इतिहास स्वयं बन जाए, वही जवानी है।
मैं बात न लिखता पानी के फव्वारों की
जब लिखता शोणित के फव्वारे लिखता हूँ
मैं फूल नहीं काँटे अनियारे लिखता हूँ।