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"सूर्य / एकांत श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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चमक रही हैं नदी की ऑंखें | चमक रही हैं नदी की ऑंखें | ||
हिल रहे हैं पेड़ों के सिर | हिल रहे हैं पेड़ों के सिर | ||
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आहिस्ता-आहिस्ता | आहिस्ता-आहिस्ता | ||
वह उग रहा है | वह उग रहा है | ||
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वह खिलेगा | वह खिलेगा | ||
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रोशनी की फूल बनकर | रोशनी की फूल बनकर | ||
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वह चमकेगा | वह चमकेगा | ||
धरती के माथ पर | धरती के माथ पर | ||
अखण्ड सुहाग की | अखण्ड सुहाग की | ||
टिकुली बनकर | टिकुली बनकर | ||
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वह | वह | ||
पेड़ और चिडि़यों के दुर्गम अंधेरे में | पेड़ और चिडि़यों के दुर्गम अंधेरे में | ||
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उग रहा है | उग रहा है | ||
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− | आहिस्ता- | + | आहिस्ता-आहिस्ता। |
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00:22, 27 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
उधर
ज़मीन फट रही है
और वह उग रहा है
चमक रही हैं नदी की ऑंखें
हिल रहे हैं पेड़ों के सिर
और पहाड़ों के
कन्धों पर हाथ रखता
आहिस्ता-आहिस्ता
वह उग रहा है
वह खिलेगा
जल भरी आँखों के सरोवर में
रोशनी की फूल बनकर
वह चमकेगा
धरती के माथ पर
अखण्ड सुहाग की
टिकुली बनकर
वह
पेड़ और चिडि़यों के दुर्गम अंधेरे में
सुबह की पहली खुशबू
और हमारे खून की ऊष्मा बनकर
उग रहा है
उधर
आहिस्ता-आहिस्ता।