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"सूखा / एकांत श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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इस तरह मेला घूमना<br />
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हुआ इस बार<br />
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न बच्‍चे के लिए मिठाई<br />
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|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव
न घरवाली के लिए टिकुली-चूड़ी<br />
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इस बार जेबों में<br />
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सिर्फ हाथ रहे<br />
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इस तरह मेला घूमना
उसका खालीपन भरते<br />
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हुआ इस बार
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इस बार मेले में<br />
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पहुंचने की ललक से पहले पहुंच गयी<br />
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न नाच न सर्कस
लौटने की थकान<br />
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इस बार जेबों में
एक खाली कटोरे के सन्‍नाटे में<br />
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सिर्फ़ हाथ रहे
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उसका खालीपन भरते
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सिर्फ सूखा टहलता रहा<br />
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इस बार मेले में
इस बार मेले में.<br />
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सिर्फ़ सूखा टहलता रहा
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इस बार मेले में।
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00:38, 1 मई 2010 के समय का अवतरण

इस तरह मेला घूमना
हुआ इस बार
न बच्‍चे के लिए मिठाई
न घरवाली के लिए टिकुली-चूड़ी
न नाच न सर्कस

इस बार जेबों में
सिर्फ़ हाथ रहे
उसका खालीपन भरते

इस बार मेले में
पहुँचने की ललक से पहले पहुँच गई
लौटने की थकान

एक खाली कटोरे के सन्‍नाटे में
डूबती रही मेले की गूँज

सिर्फ़ सूखा टहलता रहा
इस बार मेले में।