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"सिला बीनती लड़कियाँ / एकांत श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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वे रंगीन चिडि़यों की तरह उतरती हैं<br />
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|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव
सिला बीनने झुण्‍ड की झुण्‍ड<br />
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धान-कटाई के बाद  
विष्‍णुभोग या नागकेसर<br />
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वे रंगीन चिडि़यों की तरह उतरती हैं
उन्‍हें पहचान लेती हैं<br />
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सिला बीनने झुण्‍ड की झुण्‍ड
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वे लौट जाती हैं घर<br />
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उनका होना.<br />
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--[[सदस्य:Pradeep Jilwane|Pradeep Jilwane]] 10:42, 24 अप्रैल 2010 (UTC)
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दूबराज हो
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विष्‍णुभोग या नागकेसर
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वे रंग और खुशबू से
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उन्‍हें पहचान लेती हैं
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दोपहर भर फैली रहती है
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पीली धूप में उनकी हँसी
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उनके बालों में हँसते रहते हैं
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और एक गुलाबी रोशनी
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उनके चेहरे से फूटकर
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फैलती रहती है धरती पर
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जब झुकने लगते हैं दिन के कन्‍धे
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और उन्‍हें लगता है कि इतनी
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बालियों से हो जायेगा तैयार
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एक जून के लिए बटकी भर भात
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वे लौट जाती हैं घर
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बहुत देर तक भरा रहता है
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खाली खेतों में
 +
बहुत देर तक भरा रहता है
 +
उनका होना।
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</poem>

00:47, 1 मई 2010 के समय का अवतरण

धान-कटाई के बाद
खाली खेतों में
वे रंगीन चिडि़यों की तरह उतरती हैं
सिला बीनने झुण्‍ड की झुण्‍ड
और एक खेत से दूसरे खेत में
उड़ती फिरती हैं

दूबराज हो
विष्‍णुभोग या नागकेसर
वे रंग और खुशबू से
उन्‍हें पहचान लेती हैं

दोपहर भर फैली रहती है
पीली धूप में उनकी हँसी
और गुनगुनाहट

उनके बालों में हँसते रहते हैं
कनेर के फूल
और एक गुलाबी रोशनी
उनके चेहरे से फूटकर
फैलती रहती है धरती पर

जब झुकने लगते हैं दिन के कन्‍धे
और उन्‍हें लगता है कि इतनी
बालियों से हो जायेगा तैयार
एक जून के लिए बटकी भर भात
वे लौट जाती हैं घर

जैसे चोंच मारकर उड़ जाने के बाद भी
बहुत देर तक भरा रहता है
पानी में जलपाँखी का संगीत
खाली खेतों में
बहुत देर तक भरा रहता है
उनका होना।