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− | हमारे घरों की महक बनकर उठेगा | + | रंगीन चिडियों का लौट जाना है |
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− | वसन्त यानी बरसों बाद मिले | + | |
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− | हमारी पीठ पर | + | गॉंव की हर खपरैल पर |
− | + | लौकियों से लदी बेल की तरह | |
− | वसन्त यानी एक अदद दाना | + | और गोबर से लीपे |
− | हर पक्षी की चोंच में दबा | + | हमारे घरों की महक बनकर उठेगा |
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− | हमसे भी बहुत पहले | + | वसन्त यानी बरसों बाद मिले |
− | दुनिया के दूसरे कोने | + | एक प्यारे दोस्त की धौल |
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+ | वसन्त यानी एक अदद दाना | ||
+ | हर पक्षी की चोंच में दबा | ||
+ | वे इसे ले जाएँगे | ||
+ | हमसे भी बहुत पहले | ||
+ | दुनिया के दूसरे कोने तक। | ||
+ | </poem> |
19:16, 28 मार्च 2011 के समय का अवतरण
वसन्त आ रहा है
जैसे मॉं की सूखी छातियों में
आ रहा हो दूध
माघ की एक उदास दोपहरी में
गेंदे के फूल की हॅंसी-सा
वसन्त आ रहा है
वसन्त का आना
तुम्हारी ऑंखों में
धान की सुनहली उजास का
फैल जाना है
काँस के फूलों से भरे
हमारे सपनों के जंगल में
रंगीन चिडियों का लौट जाना है
वसन्त का आना
वसन्त हॅंसेगा
गॉंव की हर खपरैल पर
लौकियों से लदी बेल की तरह
और गोबर से लीपे
हमारे घरों की महक बनकर उठेगा
वसन्त यानी बरसों बाद मिले
एक प्यारे दोस्त की धौल
हमारी पीठ पर
वसन्त यानी एक अदद दाना
हर पक्षी की चोंच में दबा
वे इसे ले जाएँगे
हमसे भी बहुत पहले
दुनिया के दूसरे कोने तक।