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"पुराने रास्ते / एकांत श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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किनारे के पेड़ वही हैं | किनारे के पेड़ वही हैं | ||
− | बस थोड़े सयाने हो | + | बस थोड़े सयाने हो गए हैं |
ब्याह करने लायक बच्चों की तरह | ब्याह करने लायक बच्चों की तरह | ||
− | पहले से | + | पहले से ज़्यादा चुप हैं तपस्वी बरगद |
− | हवा चलने पर | + | हवा चलने पर सिर्फ़ उसकी जटाएँ |
लहराती हैं कभी-कभी | लहराती हैं कभी-कभी | ||
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घर वही हैं | घर वही हैं | ||
− | लेकिन कुछ गिर | + | लेकिन कुछ गिर गए हैं |
− | कुछ बन | + | कुछ बन गए हैं नए |
इन पुराने रास्तों को | इन पुराने रास्तों को | ||
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वैसी ही महीन और मुलायम है रास्ते की धूल | वैसी ही महीन और मुलायम है रास्ते की धूल | ||
− | + | पाँव पड़ते ही उठती है | |
− | जैसे चौंककर पूछती हो-भैया! | + | जैसे चौंककर पूछती हो- भैया! |
− | + | कहाँ रहे इतने दिन? | |
+ | </poem> |
19:33, 1 मई 2010 के समय का अवतरण
किनारे के पेड़ वही हैं
बस थोड़े सयाने हो गए हैं
ब्याह करने लायक बच्चों की तरह
पहले से ज़्यादा चुप हैं तपस्वी बरगद
हवा चलने पर सिर्फ़ उसकी जटाएँ
लहराती हैं कभी-कभी
खम्हार के पके पत्तों-सी
धीरे-धीरे हिल रही है दोपहर
घर वही हैं
लेकिन कुछ गिर गए हैं
कुछ बन गए हैं नए
इन पुराने रास्तों को
हाय! मैं आज तक नहीं भूला
जो नये रास्तों में भी लगातार
मेरे साथ चलते रहे
वैसी ही महीन और मुलायम है रास्ते की धूल
पाँव पड़ते ही उठती है
जैसे चौंककर पूछती हो- भैया!
कहाँ रहे इतने दिन?