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"जहाँ कभी आया नहीं / नवीन सागर" के अवतरणों में अंतर

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गरदन झुकाए बरसों
 
गरदन झुकाए बरसों
दरवाजे से निकलने
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दरवाज़े से निकलने
 
और दस्‍तक देने लगा
 
और दस्‍तक देने लगा
  
बहुत धुंधले दिनों में
+
बहुत धुँधले दिनों में
 
अपना नाम
 
अपना नाम
 
किसी और का लगा
 
किसी और का लगा
 
मैं जब कोई और लगा
 
मैं जब कोई और लगा
जब खुद को
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जब ख़ुद को
 
रोक कर अकेले में
 
रोक कर अकेले में
मैंने पूछा-कौन हो यहां!
+
मैंने पूछा-कौन हो यहाँ!
छुड़ाकर खुद से हाथ
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छुड़ाकर ख़ुद से हाथ
 
अंधेरे में उतर गया
 
अंधेरे में उतर गया
 
जिसमें एक ढहती हुई दीवार उठ रही थी
 
जिसमें एक ढहती हुई दीवार उठ रही थी
 
मैं तब कोई नहीं था अकेले में
 
मैं तब कोई नहीं था अकेले में
 
छेद से रिसता हुआ
 
छेद से रिसता हुआ
कहां-कहां रह गया जीवन!
+
कहाँ-कहाँ रह गया जीवन!
  
जहॉं कभी आया नहीं
+
जहाँ कभी आया नहीं
मेरा जीवन इस तरह बिखरा हुआ सामान था.
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मेरा जीवन इस तरह बिखरा हुआ सामान था।
कि मैं अंतिम कुली हूं
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कि मैं अंतिम कुली हूँ
और उसे छोड़कर जा रहा हूं.
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और उसे छोड़कर जा रहा हूँ।
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13:19, 31 मई 2010 के समय का अवतरण

गरदन झुकाए बरसों
दरवाज़े से निकलने
और दस्‍तक देने लगा

बहुत धुँधले दिनों में
अपना नाम
किसी और का लगा
मैं जब कोई और लगा
जब ख़ुद को
रोक कर अकेले में
मैंने पूछा-कौन हो यहाँ!
छुड़ाकर ख़ुद से हाथ
अंधेरे में उतर गया
जिसमें एक ढहती हुई दीवार उठ रही थी
मैं तब कोई नहीं था अकेले में
छेद से रिसता हुआ
कहाँ-कहाँ रह गया जीवन!

जहाँ कभी आया नहीं
मेरा जीवन इस तरह बिखरा हुआ सामान था।
कि मैं अंतिम कुली हूँ
और उसे छोड़कर जा रहा हूँ।