भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"/ बेढब बनारसी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: 1. वन्दना शारदे आज यह वर दे नैनों से भी तीखीतर हो शिशुओं सी सर्वथा …)
 
(पृष्ठ से सम्पूर्ण विषयवस्तु हटा रहा है)
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
1. वन्दना
+
 
+
शारदे आज यह वर दे
+
नैनों से भी तीखीतर हो
+
शिशुओं सी सर्वथा निडर हो
+
व्यंग-विनोद- हास का घर हो
+
तुझसी ही हे देवि अमर हो
+
इस निब-वालीको मैं जैसा चाहूँ -- वैसा कर दे
+
इसमें रंग भरा हो काला
+
किन्तु जगत में करे उजाला
+
जहाँ बनज हो रोनेवाला
+
वहाँ गिरे यह बनकर पाला
+
फाड़े यह पाखण्ड -- दंभके  ताने हुए जो परदे
+
जैसी टेढ़ी अलकें काली
+
मानों ऐंठी कोई ब्याली
+
हो यह टेढ़े शब्दों वाली
+
किन्तु नहीं हो विष की प्याली
+
इससे सुधा-बूँद बरसा अधरों पर सबके धर दे
+
भरा रहे रत्नाकर इसमें
+
रसका  भर दे सागर इसमें
+
पाएँ लोग चराचर इसमें
+
मस्ती के हो आखर इसमें
+
जग को करदे मादक, इसमें वह मादकता  भर दे
+
चूमे क्षितिज और अंबरको
+
नक्षत्रों के लोक प्रवरको
+
करै पराजित यह निर्झर को 
+
छूले मानव के अन्तर को
+
उड़े कल्पना के समीर पर इसको ऐसा करदे
+
मूर्ख मनुज की वाह-वाह से
+
बिना ह्रदयवाली निगाह से
+
पैसों की स्वादिष्ट चाह से 
+
इन तीनों सागर अथाह से
+
इक्यावन नम्बरवाली यह पार पारकर कर दे
+

02:36, 22 मई 2010 के समय का अवतरण