भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बसंत ऋतु / बेढब बनारसी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=बेढब बनारसी
 
|रचनाकार=बेढब बनारसी
}}
+
}}{{KKAnthologyBasant}}
{{KKCatKavita}}
+
{{KKCatKavita‎}}
 
<poem>
 
<poem>
  

18:41, 28 मार्च 2011 के समय का अवतरण


आगया मधुमास आली
दिवसभर वह पाठ पढ़ते
नित्य प्रातः हैं टहलते
और आधी रात तक तो
जागती है सास आली; आ गया मधुमास आली

जब कहा - मुझको दिखा दो
एक दिन सिनेमा भला तो;
बोल उठे संध्या समय
लगता हमारा क्लास आली; आ गया मधुमास आली

ढ़ाक और कचनार फूले
आम के भी बौर झूले
रट रहे हैं किन्तु वह
तद्धित-कृदंत-समास आली; आ गया मधुमास आली

'सेंट' माँगा; सोप माँगा,
ह्रदय को कुछ होप माँगा
हम यही कहते रहे --
हो जानी जब हम पास आली; आ गया मधुमास आली