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"वन-वन, उपवन / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

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बन-बन, उपवन--  
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वन-वन, उपवन--  
 
छाया उन्मन-उन्मन गुंजन,  
 
छाया उन्मन-उन्मन गुंजन,  
 
नव-वय के अलियों का गुंजन!   
 
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रे गंध-अंध हो ठौर-ठौर  
 
रे गंध-अंध हो ठौर-ठौर  
 
:उड़ पाँति-पाँति में चिर-उन्मन  
 
:उड़ पाँति-पाँति में चिर-उन्मन  
:करते मधु के बन में गुंजन!   
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:करते मधु के वन में गुंजन!   
  
बन के विटपों की डाल-डाल  
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वन के विटपों की डाल-डाल  
 
कोमल कलियों से लाल-लाल,  
 
कोमल कलियों से लाल-लाल,  
 
फैली नव-मधु की रूप-ज्वाल,  
 
फैली नव-मधु की रूप-ज्वाल,  

10:46, 10 जून 2010 के समय का अवतरण

वन-वन, उपवन--
छाया उन्मन-उन्मन गुंजन,
नव-वय के अलियों का गुंजन!

रुपहले, सुनहले आम्र-बौर,
नीले, पीले औ ताम्र भौंर,
रे गंध-अंध हो ठौर-ठौर
उड़ पाँति-पाँति में चिर-उन्मन
करते मधु के वन में गुंजन!

वन के विटपों की डाल-डाल
कोमल कलियों से लाल-लाल,
फैली नव-मधु की रूप-ज्वाल,
जल-जल प्राणों के अलि उन्मन
करते स्पन्दन, करते-गुंजन!

अब फैला फूलों में विकास,
मुकुलों के उर में मदिर वास,
अस्थिर सौरभ से मलय-श्वास,
जीवन-मधु-संचय को उन्मन
करते प्राणों के अलि गुंजन!

रचनाकाल: जनवरी’ 1932