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"पतंग और चरखड़ी (कविता) / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर

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पतंग और चरखड़ी
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वो पतंग लाया
 
वो पतंग लाया
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बच्चे हैं बहुत
 
बच्चे हैं बहुत
 
पतंगें हैं कम
 
पतंगें हैं कम
चरखड़ियां तो और भी कम
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चरखड़ियाँ तो और भी कम
चरखड़ियों में धगा
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चरखड़ियों में धागा
 
बहुत-बहुत कम
 
बहुत-बहुत कम
  
कहां गई पतंगें?
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कहां गई चरखड़ियां?
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कहाँ गई चरखड़ियां?
कहां गया धागा?
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कहाँ गया धागा?
 
1997
 
1997
  
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जिनके पास चरखड़ी नहीं होती
 
जिनके पास चरखड़ी नहीं होती
वो खुद चरखड़ी बन जाते हैं
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वो ख़ुद चरखड़ी बन जाते हैं
 
और कवि की कविता में
 
और कवि की कविता में
 
पतंग उड़ाते हैं।  
 
पतंग उड़ाते हैं।  
 
1999
 
1999
 
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20:55, 16 मई 2010 के समय का अवतरण

1
वो पतंग लाया
वो लाया चरखड़ी

चरखड़ी मुझे थमाई
उसने पतंग उड़ाई

उसने हमेशा पतंग उड़ाई
मैंने बस चरखड़ी हिलाई
1985

2
बच्चों के पास पतंग थी
तो चरखड़ी नहीं थी

बच्चों के पास चरखड़ी थी
तो पतंग नहीं थी

पतंग और चरखड़ी
एक साथ पाने का सपना
बच्चों के पास हमेशा था
1996


3
बच्चे हैं बहुत
पतंगें हैं कम
चरखड़ियाँ तो और भी कम
चरखड़ियों में धागा
बहुत-बहुत कम

कहाँ गई पतंगें?
कहाँ गई चरखड़ियां?
कहाँ गया धागा?
1997


4
जिनके पास चरखड़ी होती है
वे पतंग उड़ाना सीख ही जाते हैं

जिनके पास चरखड़ी नहीं होती
वे शायद ही पतंग उड़ा पाते हैं

जिनके पास चरखड़ी नहीं होती
वो ख़ुद चरखड़ी बन जाते हैं
और कवि की कविता में
पतंग उड़ाते हैं।
1999