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जीवन की मर्मर छाया में नीड़ रच अमर,
 
जीवन की मर्मर छाया में नीड़ रच अमर,

00:59, 19 मई 2010 के समय का अवतरण

जीवन की मर्मर छाया में नीड़ रच अमर,
गाए तुमने स्वप्न रँगे मधु के मोहक स्वर,
यौवन के कवि, काव्य काकली पट में स्वर्णिम
सुख दुख के ध्वनि वर्णों की चल धूप छाँह भर!

घुमड़ रहा था ऊपर गरज जगत संघर्षण,
उमड़ रहा था नीचे जीवन वारिधि क्रंदन;
अमृत हृदय में, गरल कंठ में, मधु अधरों में--
आए तुम, वीणा धर कर में जन मन मादन!
मधुर तिक्त जीवन का मधु कर पान निरंतर
मथ डाला हर्षोद्वेगों से मानव अंतर
तुमने भाव लहरियों पर जादू के स्वर से
स्वर्गिक स्वप्नों की रहस्य ज्वाला सुलगाकर!

तरुण लोक कवि, वृद्ध उमर के सँग चिर परिचित
पान करो फिर, प्रणय स्वप्न स्मित मधु अधरामृत,
जीवन के सतरँग बुद्बुद पर अर्ध निमीलित
प्रीति दृष्टि निज डाल साथ ही जाग्रत् विस्मृत!