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18:25, 28 मई 2010 के समय का अवतरण
तेरे करुणांबुधि का केवल
एक झाग यह नीलाकाश,
तेरे आँगन के कोने में,
सौ सजीव काबों का वास!
तदि मैं तेरे दया द्वार तक
पहुँच सकूँ, जीवन हो धन्य,
थक कर मग ही में रह जाऊँ
तो न व्यर्थ हो वह आयास!