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"मिला दुःख ही दुःख जब क्षण-क्षण में / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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[[Category:गीत]]
 
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मिला दुःख ही दुःख जब क्षण-क्षण में
 
कहा कुमारों ने, 'सुख-वर्णन क्या हो रामायण में!
 
पंचवटी में भी जब आये
 
क्या श्री राम सुखी रह पाये!
 
सीता को न देख अकुलाये
 
चुभा शूल-सा मन में
 
 
 
'बोले लक्ष्मण से कातर-स्वर
 
"भाई! क्यों तुम गये छोड़कर!
 
सोचा भी न अकेली स्त्री पर
 
क्या बीतेगी वन में!" '
 
 
 
पूरी भी न हुई थी गाथा
 
प्रभु ने सिहर झुकाया माथा
 
'क्यों न मुझे भी यह सूझा था
 
उसके निर्वासन में!'
 
 
मिला दुःख ही दुःख जब क्षण-क्षण में
 
कहा कुमारों ने, 'सुख-वर्णन क्या हो रामायण में!
 
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02:55, 22 जुलाई 2011 के समय का अवतरण