"अपूरित प्रार्थनाएँ / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> भूखी नंगी प…) |
|||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | '''अपूरित प्रार्थनाएं''' | ||
+ | |||
भूखी नंगी प्रार्थनाएँ | भूखी नंगी प्रार्थनाएँ | ||
अब बूढ़ी हो चली हैं, | अब बूढ़ी हो चली हैं, | ||
− | ईश्वर | + | ईश्वर ने उन्हें कब कृतार्थ किया है ? |
प्रार्थनाओं की कामयाबी से जुड़ा है | प्रार्थनाओं की कामयाबी से जुड़ा है | ||
पंक्ति 32: | पंक्ति 34: | ||
ग़ुलामी और मुफ़लिसी के सिवाय | ग़ुलामी और मुफ़लिसी के सिवाय | ||
हमें दिया क्या है? | हमें दिया क्या है? | ||
+ | |||
+ | (सृजन संवाद, संपा. ब्रजेश, अंक ९, २००९ ) | ||
+ | |||
+ | |||
</poem> | </poem> |
15:13, 10 जून 2010 के समय का अवतरण
अपूरित प्रार्थनाएं
भूखी नंगी प्रार्थनाएँ
अब बूढ़ी हो चली हैं,
ईश्वर ने उन्हें कब कृतार्थ किया है ?
प्रार्थनाओं की कामयाबी से जुड़ा है
विफ़ल होते परिणामों का जंग-खाया तार,
अगर प्रार्थनाएँ
संतुष्ट, समृद्ध, सुपरिणामी होतीं,
माँएँ दुधमुँहों को त्याग
कालकवलित न होतीं,
बाप खुद में ग़ुम न हो जाता,
भविष्य दीन-दुनिया से ग़ाफ़िल हो--
जीना इतना बदशक़्ल न बना जाता।
प्रार्थनाओं को थानेदार बनाने की अक्षम्य भूल ने
संसद से सड़क तक विप्लव फैला रखा है,
बेशक! प्रार्थनाओं के मोहपाश ने
इतना काहिल बना दिया है कि
हम भूल गए हैं कर्म का दर्शन
और छोड़ दी है हमने
फलदार संघर्ष की छाँव।
प्रार्थनाओं को देश-निकाला दे दो
उनकी सोहबत ने
ग़ुलामी और मुफ़लिसी के सिवाय
हमें दिया क्या है?
(सृजन संवाद, संपा. ब्रजेश, अंक ९, २००९ )