भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बस गवैया / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna}} <poem> बस गवैया चलती बस की खड़ी भीड़ में देखो बच्चा चूमता ह…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
− | {{KKRachna}} | + | {{KKRachna |
+ | |रचनाकार=मुकेश मानस | ||
+ | |संग्रह=पतंग और चरखड़ी / मुकेश मानस | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | |||
− | |||
− | |||
चलती बस की खड़ी भीड़ में | चलती बस की खड़ी भीड़ में | ||
देखो बच्चा चूमता है | देखो बच्चा चूमता है | ||
चूमता है दोनों हाथ | चूमता है दोनों हाथ | ||
− | चूमता शीशे की | + | चूमता शीशे की पट्टियाँ |
− | सूखा गला | + | सूखा गला साफ़ करता है |
होठों पर जीभ फिराता है | होठों पर जीभ फिराता है | ||
वह शुरू करेगा अब कोई गीत | वह शुरू करेगा अब कोई गीत | ||
पंक्ति 16: | पंक्ति 17: | ||
यात्रियों को लुभा सके उसकी आवाज़ | यात्रियों को लुभा सके उसकी आवाज़ | ||
निकलें गीत पेट से उसके | निकलें गीत पेट से उसके | ||
− | आओ | + | आओ बंधु! दुआ करें |
− | 1991 | + | |
+ | रचनाकाल : 1991 | ||
<poem> | <poem> |
11:46, 6 जून 2010 के समय का अवतरण
चलती बस की खड़ी भीड़ में
देखो बच्चा चूमता है
चूमता है दोनों हाथ
चूमता शीशे की पट्टियाँ
सूखा गला साफ़ करता है
होठों पर जीभ फिराता है
वह शुरू करेगा अब कोई गीत
दिन भर वह गा सके मधुरतम
यात्रियों को लुभा सके उसकी आवाज़
निकलें गीत पेट से उसके
आओ बंधु! दुआ करें
रचनाकाल : 1991