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"सवाल / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर

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सवाल
 
 
 
एक सवाल है
 
एक सवाल है
जो रोज मुझसे मिलता है
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जो रोज़ मुझसे मिलता है
कोई खुशी नहीं होती
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कोई ख़ुशी नहीं होती
 
मुझे उससे मिलकर
 
मुझे उससे मिलकर
  
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मुझे खोज लेता है
 
मुझे खोज लेता है
 
जैसे कि वह मेरे भीतर हो
 
जैसे कि वह मेरे भीतर हो
या जैसे कि ‘वह’ मैं खुद हूं
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या जैसे कि ‘वह’ मैं ख़ुद हूँ
  
आंखों में आँखें डालकर
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बस यही पूछता है
 
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जीवन ऐसा क्यों मिला
 
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जीते हुए जिसे
 
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हर पल होता रहे गिला
 
हर पल होता रहे गिला
1998
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रचनाकाल : 1998
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11:44, 6 जून 2010 के समय का अवतरण

एक सवाल है
जो रोज़ मुझसे मिलता है
कोई ख़ुशी नहीं होती
मुझे उससे मिलकर

मैं उससे बचने की
हर संभव कोशिश करता हूं
मगर ताज्जुब है
वह बड़ी आसानी से
मुझे खोज लेता है
जैसे कि वह मेरे भीतर हो
या जैसे कि ‘वह’ मैं ख़ुद हूँ

आँखों में आँखें डालकर
बस यही पूछता है
जीवन ऐसा क्यों मिला
जीते हुए जिसे
हर पल होता रहे गिला

रचनाकाल : 1998