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"हानी / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर
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16:16, 6 जून 2010 के समय का अवतरण
भीतर खत्म हुआ जब पानी
घर से बाहर आया हानी
आसमान में बादल देखा
बड़े देश को प्यासा देखा
लगा सोचने अपना हानी
कहां गया सब पानी
खेत-खेत और गांव-गांव
पानी के हर ठांव-ठांव
कमल प्यास में नहीं खिला
उसको पानी नहीं मिला
हरा समंदर
गोपी चंदर
बूझो यारो
बूझो कैसे
अपना हानी
बनता पानी
रचनाकाल:1998