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"दिल्ली / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर

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'''दिल्ली'''
 
 
 
कोई नहीं रोता
 
कोई नहीं रोता
 
लाखों-लाख लोगों को
 
लाखों-लाख लोगों को

16:11, 6 जून 2010 के समय का अवतरण

कोई नहीं रोता
लाखों-लाख लोगों को
क़त्ल करता हुआ ये शहर
क़त्ल नहीं होता

मेरी कविता के ज़िगर में
धंस गई है किल्ली
तलवार की धर बन गई है
दिलवालों की दिल्ली

रचनाकाल:1994