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"हमको मरने के / ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'" के अवतरणों में अंतर

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हमको मरने के लिए कुछ ज़िंदगी भी चाहिए
  
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तीरगी मंज़ूर है, पर रोशनी भी चाहिए
  
  
सर पे छत, पाँवों तले हो बस गुज़ारे भर ज़मीन
 
काश हो हर आदमी को सिर्फ इतना सा यक़ीन
 
  
मुझसे जो आँखें मिलाकर मुस्कुरा दे एक बार
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रूह की हर बात मानें हम ज़रूरी तो नहीं
क्या कहीं पर भी नहीं है वो ख़ुशी, वो नाज़नीन
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जो बड़ी मासूमियत से छीन लेता है क़रार
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कुछ तो आज़ादी हमारे जिस्म को भी चाहिए
उसके सीने में धड़कता दिल है या कोई मशीन
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पूछती रहती है मुझसे रोज़ नफ़रत की नज़र
 
कब तलक देखा करोगे प्यार के सपने हसीन
 
  
वक़्त की कारीगरी को कैसे समझोगे पराग
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अक़्ल मोटी है तुम्हारी, काम उसका है महीन
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जीतने भर से लड़ाई ख़त्म हो जाती नहीं
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हार का अहसास कुछ तो जीत को भी चाहिए
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उम्र के हर दौर को भरपूर जीने के लिए
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थोड़ा गम़ भी चाहिए, थोड़ी ख़ुशी भी चाहिये
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तृप्ति के एहसास में कुछ तिश्नगी भी चाहिये
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दर्द ही काफ़ी नहीं है शायरी के वास्ते
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कुछ सदाक़त और आवारगी भी चाहिये
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हम ख़ुदा से उम्र भर लड़ते रहे यूँ तो पराग
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पर वो कहते हैं कि थोड़ी बंदगी भी चाहिए

21:54, 24 जून 2009 के समय का अवतरण

हमको मरने के लिए कुछ ज़िंदगी भी चाहिए

तीरगी मंज़ूर है, पर रोशनी भी चाहिए


रूह की हर बात मानें हम ज़रूरी तो नहीं

कुछ तो आज़ादी हमारे जिस्म को भी चाहिए


जीतने भर से लड़ाई ख़त्म हो जाती नहीं

हार का अहसास कुछ तो जीत को भी चाहिए


उम्र के हर दौर को भरपूर जीने के लिए

थोड़ा गम़ भी चाहिए, थोड़ी ख़ुशी भी चाहिये


प्यास बुझने का तभी सुख है कि बाक़ी भी रहे

तृप्ति के एहसास में कुछ तिश्नगी भी चाहिये


दर्द ही काफ़ी नहीं है शायरी के वास्ते

कुछ सदाक़त और आवारगी भी चाहिये


हम ख़ुदा से उम्र भर लड़ते रहे यूँ तो पराग

पर वो कहते हैं कि थोड़ी बंदगी भी चाहिए