"कमबख्त हिन्दुस्तानी / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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उफ़्फ़! और आगे क्यों नहीं | उफ़्फ़! और आगे क्यों नहीं | ||
अरे-रे-रे, रुक क्यों गए | अरे-रे-रे, रुक क्यों गए | ||
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सिर उठाकर सामने देखो | सिर उठाकर सामने देखो | ||
शाबाश! देखो ही नहीं | शाबाश! देखो ही नहीं | ||
| − | + | क़दम भी आगे बढ़ाओ | |
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सामने तो खुला रास्ता है | सामने तो खुला रास्ता है | ||
क्यों खुले रास्ते से डर लगता है | क्यों खुले रास्ते से डर लगता है | ||
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आह! फिर, वैसा ही करने लगे | आह! फिर, वैसा ही करने लगे | ||
| − | + | खड़े ही रहोगे | |
अरे बैठ भी गये | अरे बैठ भी गये | ||
लेकिन, लेटना मत! | लेकिन, लेटना मत! | ||
च्च, च्च, च्च, लेट गये | च्च, च्च, च्च, लेट गये | ||
पर, सोना मत | पर, सोना मत | ||
| − | हाय! | + | हाय! आँखें क्यों बंद कर ली |
धत्त! खर्राटे भी भरने लगे | धत्त! खर्राटे भी भरने लगे | ||
काहिल कहीं के! | काहिल कहीं के! | ||
अजगर ही बने रहोगे | अजगर ही बने रहोगे | ||
| − | + | कमबख़्त हिन्दुस्तानी! | |
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| − | + | '''रचनाकाल : 08 अगस्त 2009''' | |
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16:12, 18 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
कमबख्त हिन्दुस्तानी
आगे
थोड़ा और आगे
और, और आगे
उफ़्फ़! और आगे क्यों नहीं
अरे-रे-रे, रुक क्यों गए
ज़मीन पर आँखें गड़ाए क्यों खड़े हो
हाँ, हाँ, कोशिश करो
सिर उठाकर सामने देखो
शाबाश! देखो ही नहीं
क़दम भी आगे बढ़ाओ
ओह्! सिर दाएँ-बाएँ क्यों करने लगे
सामने तो खुला रास्ता है
क्यों खुले रास्ते से डर लगता है
देखो! ऐसे करोगे तो...
शाम हो ही चुकी है
अब रात का घुप्प अन्धेरा भी पसरने लगेगा
फिर, कैसे आगे जा सकोगे
आह! फिर, वैसा ही करने लगे
खड़े ही रहोगे
अरे बैठ भी गये
लेकिन, लेटना मत!
च्च, च्च, च्च, लेट गये
पर, सोना मत
हाय! आँखें क्यों बंद कर ली
धत्त! खर्राटे भी भरने लगे
काहिल कहीं के!
अजगर ही बने रहोगे
कमबख़्त हिन्दुस्तानी!
रचनाकाल : 08 अगस्त 2009
