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"हाइकु / कमलेश भट्ट 'कमल'" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=कमलेश भट्ट 'कमल'
 
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|संग्रह=हाइकू 2009 / गोपालदास "नीरज"
 
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[[Category:हाइकु]]
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मुँह चिढ़ाती
 
लम्बे चौड़े पुल को
 
सूखती नदी ।
 
  
  
ऊब चले हैं 
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कौन मानेगा
वर्षा की प्रतीक्षा में
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सबसे कठिन है
पैड़-पौधे भी।
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सरल होना।
 
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पीने लगा है
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धरती का भी पानी
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प्यासा सूरज।
+
 
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निकली नहीं
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कंजूस बादलों से
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एक भी बूँद ।
+
 
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तरस गये
+
पहचान को खुद
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सावन-भादौं ।
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कहो तो सही
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मन प्राणों से तुम
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वक्त सुनेगा ।
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गावों से लाता  
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गाँवों से लाता  
 
शुद्ध आक्सीजन भी  
 
शुद्ध आक्सीजन भी  
 
वश न चला ।
 
वश न चला ।
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रात होते ही  
 
रात होते ही  
 
गोलबन्द हो गये  
 
गोलबन्द हो गये  
चाँद सितारे ।
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चाँद-सितारे ।
  
  
 
घिर गया है  
 
घिर गया है  
 
विषैली लताओं से  
 
विषैली लताओं से  
जीवन वृक्ष ।
+
जीवन- वृक्ष ।
 
   
 
   
  

10:56, 13 अक्टूबर 2019 के समय का अवतरण



कौन मानेगा
सबसे कठिन है
सरल होना।


प्रीति, हाँ प्रीति
दुनिया में सुख की
एक ही रीति ।


आप से मिले
तो लगा क्या मिलना
किसी और से !


ढूँढ़ता रहा
खुद को दिन रात
ढूँढ़ न पाया !


छोटा कर दे
रातों की लम्बाई भी
गहरी नींद ।

 
छीन ही लिया
नदी का नदीपन
प्यासे बाँधों ने ।


रिश्तों से ज्यादा
तनाव बसते है
घरों में अब !

युग-युगों से
सोए पड़े पहाड़
जागेंगे कब ?

  
गाँवों से लाता
शुद्ध आक्सीजन भी
वश न चला ।


 
भीड़ तो बढ़ी
विरल हो चले हैं
रिश्ते परंतु ।



रात होते ही
गोलबन्द हो गये
चाँद-सितारे ।


घिर गया है
विषैली लताओं से
जीवन- वृक्ष ।
 

बुझते हुए
पल भर को सही
लड़ी थी लौ भी ।
 


मैं नहीं हूँ मैं
तुम भी कहाँ तुम
सब मुखौटॆ ।