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"शनि मंदिर में / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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विराजमान मिलेंगे यहां,
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सभी के दुखडे सुनते,
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हरते बिवाई-पीर, बाई-बतास
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भगाते जिन्न-प्रेत
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बनाते गंगू तेली को राजा भोज--
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सभी वर्जित-अवैध  स्रोतों से
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काले मन्दिर की काली मूरत में प्रतिष्ठित
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बाकायदा काले वस्त्र ओढे
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काली उडद, काली तिल और
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लोहे  सिक्के के चढावे पर प्रसन्न
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सशर्त दर्शनार्थियों को देते अक्षय वरदान
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समेटते उनके काले करतूतों को
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अपने कालेपन में
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ऐसे हैं पराक्रमी शनि भगवान
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अपराधबोध पैदा करते उनके मन में
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जो अफ़रातफ़री में गुजरते हुए भूल जाते
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करना उन्हें नेम-धरम से प्रणाम
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देवोत्तम! मुझे भी दो
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काले कारनामों के निष्पादन की
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अथक क्षमता
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और मेरा कालापन सोखकर
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भर दो मेरे भौतिक-अभौतिक रूपों में
 +
अक्षय उजलापन

16:20, 30 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

शनि मंदिर में...


आते हैं यहाँ ऐन शनिवार के दिन
सभी समाजों के छूट-अछूत जन
बाम्भन-चमार, लुच्चे-लफंगे
पापी-पुण्यात्मा, पीर-महात्मा
छोटे-बड़े नेता-अभिनेता
अफसर-बाबू, मवाली-बदमाश
बनिया-बक्काल, ज़माखोर-मुनाफाखोर
लम्पट-लावारिस, आशिक-गुंडे
अंडरवर्ल्ड के डान-गुर्गे
छिनाल-हरजाई, चोर-उचक्के
वगैरह-वगैरह

मतलब, इकलौते समानतावादी भगवान
विराजमान मिलेंगे यहां,
कडू तेल के जलते दीया के आगे
सभी के दुखडे सुनते,
हरते बिवाई-पीर, बाई-बतास
भगाते जिन्न-प्रेत
बनाते गंगू तेली को राजा भोज--
सभी वर्जित-अवैध स्रोतों से

काले मन्दिर की काली मूरत में प्रतिष्ठित
बाकायदा काले वस्त्र ओढे
काली उडद, काली तिल और
लोहे सिक्के के चढावे पर प्रसन्न
सशर्त दर्शनार्थियों को देते अक्षय वरदान
समेटते उनके काले करतूतों को
अपने कालेपन में

ऐसे हैं पराक्रमी शनि भगवान
अपराधबोध पैदा करते उनके मन में
जो अफ़रातफ़री में गुजरते हुए भूल जाते
करना उन्हें नेम-धरम से प्रणाम

देवोत्तम! मुझे भी दो
काले कारनामों के निष्पादन की
अथक क्षमता
और मेरा कालापन सोखकर
भर दो मेरे भौतिक-अभौतिक रूपों में
अक्षय उजलापन