"इस रेखांकित समय में / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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जबकि टी०वी० समाज | जबकि टी०वी० समाज | ||
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सूरज के आगे | सूरज के आगे | ||
पानी को लेकर | पानी को लेकर | ||
− | आंदोलन और प्रदर्शन कर रहे | + | आंदोलन और प्रदर्शन कर रहे हैं |
मानसून की दग़ाबाज़ी से | मानसून की दग़ाबाज़ी से | ||
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जबकि नगरपालिका के सौजन्य से | जबकि नगरपालिका के सौजन्य से | ||
पानी के टैंकर आए-दिन | पानी के टैंकर आए-दिन | ||
− | मोहल्लों में प्यास से मुक्ति की | + | मोहल्लों में प्यास से |
− | गंगा बहा रहे हैं | + | मुक्ति की गंगा बहा रहे हैं |
यह बात अलग है कि | यह बात अलग है कि | ||
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चार्ल्स डार्विन सरेआम भौंक रहा है, | चार्ल्स डार्विन सरेआम भौंक रहा है, | ||
काहिल बिहारी मज़दूर | काहिल बिहारी मज़दूर | ||
− | और भुक्खड़ | + | और भुक्खड़ उड़िया किसान |
ख़ुदकुशियों को आबाद रख | ख़ुदकुशियों को आबाद रख | ||
नाकाबिल, नामर्द और कमज़ोरों की | नाकाबिल, नामर्द और कमज़ोरों की | ||
तादात घटाते जा रहे हैं | तादात घटाते जा रहे हैं | ||
− | और यह कितनी | + | और यह कितनी बुरी ख़बर है कि |
शहर के नामचीन अस्पताल | शहर के नामचीन अस्पताल | ||
स्वस्थ बाशिंदों के कारण | स्वस्थ बाशिंदों के कारण | ||
पंक्ति 47: | पंक्ति 50: | ||
क्योंकि फुटपाथ के | क्योंकि फुटपाथ के | ||
कोकीनखोर रह चुके भिखारी | कोकीनखोर रह चुके भिखारी | ||
− | उन शाही होटलों की शान बढ़ा रहे | + | उन शाही होटलों की शान बढ़ा रहे हैं |
हम समय से आगे चल रहे हैं | हम समय से आगे चल रहे हैं | ||
पंक्ति 56: | पंक्ति 59: | ||
और अतरौली में | और अतरौली में | ||
एक हयादार औरत के | एक हयादार औरत के | ||
− | भूखों मरने की ख़बर छाप रहा | + | भूखों मरने की ख़बर छाप रहा है |
कितना ओछा आचरण है कि | कितना ओछा आचरण है कि | ||
पंक्ति 63: | पंक्ति 66: | ||
ग़ुमख़बरी के डस्टबिन में डाल रहा है | ग़ुमख़बरी के डस्टबिन में डाल रहा है | ||
जबकि आयकर विभाग | जबकि आयकर विभाग | ||
− | + | बाबुओं के घुन-खाए बटुए से | |
− | आयकर चिचोर रहा | + | आयकर चिचोर रहा है |
क्या ज़रूरत है | क्या ज़रूरत है | ||
पंक्ति 76: | पंक्ति 79: | ||
अपनी लुगाई से धंधा करा रहा है | अपनी लुगाई से धंधा करा रहा है | ||
और ऐय्याश ज़िंदग़ी बसर कर रहा है? | और ऐय्याश ज़िंदग़ी बसर कर रहा है? | ||
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+ | (04-12-2007) | ||
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15:19, 17 अगस्त 2010 के समय का अवतरण
इस रेखांकित समय में
इस रेखांकित समय में
जबकि टी०वी० समाज
हमारे समाज के साथ
घुल-मिल रहा है,
लोगबाग़ फ़िज़ूल ही
असफ़ल मानसन के खि़लाफ़
बग़ावत कर रहे हैं
और नीली कोठी में दुबके
सूरज के आगे
पानी को लेकर
आंदोलन और प्रदर्शन कर रहे हैं
मानसून की दग़ाबाज़ी से
कोई प्यासा कैसे मर सकता है
जबकि नगरपालिका के सौजन्य से
पानी के टैंकर आए-दिन
मोहल्लों में प्यास से
मुक्ति की गंगा बहा रहे हैं
यह बात अलग है कि
औरतें पानी के बजाय
कास्मेटिक क्रीमों से
स्नान कर अघा रही हैं।
बेशक!
इतना सार्थक दौर चल रहा है कि
चार्ल्स डार्विन सरेआम भौंक रहा है,
काहिल बिहारी मज़दूर
और भुक्खड़ उड़िया किसान
ख़ुदकुशियों को आबाद रख
नाकाबिल, नामर्द और कमज़ोरों की
तादात घटाते जा रहे हैं
और यह कितनी बुरी ख़बर है कि
शहर के नामचीन अस्पताल
स्वस्थ बाशिंदों के कारण
दीवालिया होते जा रहे हैं
जबकि फ़ाइव स्टार होटलों की संख्या
लगातार बढ़ती जा रही है
क्योंकि फुटपाथ के
कोकीनखोर रह चुके भिखारी
उन शाही होटलों की शान बढ़ा रहे हैं
हम समय से आगे चल रहे हैं
और हमारी आर्थिक विकास-दर
उम्मीद की दुधारू गाय बनती जा रही है
जबकि कमबख़्त मीडिया
कीचड़ उछालने से बाज़ नहीं आ रहा है
और अतरौली में
एक हयादार औरत के
भूखों मरने की ख़बर छाप रहा है
कितना ओछा आचरण है कि
अमिताभ बच्चन द्वारा 15 करोड़ के
इनकम-टैक्स भरे जाने को
ग़ुमख़बरी के डस्टबिन में डाल रहा है
जबकि आयकर विभाग
बाबुओं के घुन-खाए बटुए से
आयकर चिचोर रहा है
क्या ज़रूरत है
इस खुशनुमा दौर में
खंगाली-गई ख़बरें छापने की--
कि डोम, रोहिताश्व के कफ़न में से
मुर्दाघाटनुमा क़ौम को ढँकने के लिए
एक टुकड़ा माँग रहा है
जबकि अवाम का हरिशचंद्र खुद को
महाजन यानी हुक़ूमत के हाथों गि़रवी रखकर
अपनी लुगाई से धंधा करा रहा है
और ऐय्याश ज़िंदग़ी बसर कर रहा है?
(04-12-2007)