भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मानसून का पहला पानी / वीरेन डंगवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
याद वही सब करता है
 
याद वही सब करता है
 
जो याद नहीं अब, फिर भी रह-रह बजता है
 
जो याद नहीं अब, फिर भी रह-रह बजता है
ज्यों काँसे की गागर पर बज़ती हों बूंदें
+
ज्यों काँसे की गागर पर बजती हों बूँदें
  
 
वह गागर, यों तो फूट चुकी है अब कब की,
 
वह गागर, यों तो फूट चुकी है अब कब की,
 
पर रक्खी है फिर भी सहेजकर पेटी में ।
 
पर रक्खी है फिर भी सहेजकर पेटी में ।
 
</poem>
 
</poem>

22:25, 21 जून 2010 के समय का अवतरण

मानसून का पहला पानी पड़ता है
लम्बे व्याकुल इन्तज़ार के बाद
सुबह से,
अति ऊभ-चूभ मन
याद वही सब करता है
जो याद नहीं अब, फिर भी रह-रह बजता है
ज्यों काँसे की गागर पर बजती हों बूँदें ।

वह गागर, यों तो फूट चुकी है अब कब की,
पर रक्खी है फिर भी सहेजकर पेटी में ।