"देख अपनी बदनसीबी दिल यूं धड़कता यारो / मधुभूषण शर्मा 'मधुर'" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुभूषण शर्मा 'मधुर' }} {{KKCatGhazal}} <poem> देख अपनी …) |
|||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | देख अपनी बदनसीबी दिल यूं धड़कता यारो | |
− | + | जैसे गुलाब पत्ती-पत्ती बिखरता यारो | |
− | + | इस ज़िन्दगी में खुशियां आती हैं यूं कि जैसे , | |
− | + | बादल से लुकते- छिपते सूरज निकलता यारो ! | |
− | + | बिजली चमक रही है,ढ़क लूं मैं दिल का शीशा , | |
− | + | टूटा हुआ है यूं तो, पर क्या बिगडता यारो ! | |
− | + | क्यूं रो रहे हो उसने जाना था एक दिन तो , | |
− | + | कोई किसी के घर में कब तक ठहरता यारो ! | |
अपने नसीब पे मैं जी भर के आज रो लूं , | अपने नसीब पे मैं जी भर के आज रो लूं , | ||
धुल कर ही बारिशों से दिन है निखरता यारो ! | धुल कर ही बारिशों से दिन है निखरता यारो ! | ||
− | + | देखी करीब से है मैंने ये बदनसीबी , | |
− | + | पूछो मुझे मुक़द्दर कैसे सँवरता यारो ! | |
</poem> | </poem> |
20:55, 25 जून 2010 के समय का अवतरण
देख अपनी बदनसीबी दिल यूं धड़कता यारो
जैसे गुलाब पत्ती-पत्ती बिखरता यारो
इस ज़िन्दगी में खुशियां आती हैं यूं कि जैसे ,
बादल से लुकते- छिपते सूरज निकलता यारो !
बिजली चमक रही है,ढ़क लूं मैं दिल का शीशा ,
टूटा हुआ है यूं तो, पर क्या बिगडता यारो !
क्यूं रो रहे हो उसने जाना था एक दिन तो ,
कोई किसी के घर में कब तक ठहरता यारो !
अपने नसीब पे मैं जी भर के आज रो लूं ,
धुल कर ही बारिशों से दिन है निखरता यारो !
देखी करीब से है मैंने ये बदनसीबी ,
पूछो मुझे मुक़द्दर कैसे सँवरता यारो !