भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ज़रा सुनो तो / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार= कुमार रवींद्र | |रचनाकार= कुमार रवींद्र | ||
+ | |संग्रह=और...हमने सन्धियाँ कीं / कुमार रवींद्र | ||
}} | }} | ||
{{KKCatNavgeet}} | {{KKCatNavgeet}} | ||
पंक्ति 7: | पंक्ति 8: | ||
ज़रा सुनो तो | ज़रा सुनो तो | ||
घर-घर में अब गीत हमारे | घर-घर में अब गीत हमारे | ||
− | गूँज रहे हैं! | + | गूँज रहे हैं ! |
यहाँ चिता पर हम लेटे | यहाँ चिता पर हम लेटे | ||
पंक्ति 16: | पंक्ति 17: | ||
पार मृत्यु के | पार मृत्यु के | ||
हम जीवन की नई पहेली | हम जीवन की नई पहेली | ||
− | बूझ रहे हैं! | + | बूझ रहे हैं ! |
मंत्र रचे थे | मंत्र रचे थे | ||
पंक्ति 25: | पंक्ति 26: | ||
उन्हीं अनूठे | उन्हीं अनूठे | ||
मंत्रों से सब नए सूर्य को | मंत्रों से सब नए सूर्य को | ||
− | पूज रहे हैं! | + | पूज रहे हैं ! |
अंतिम गीत हमारा यह | अंतिम गीत हमारा यह | ||
पंक्ति 32: | पंक्ति 33: | ||
इसको करने पूरा | इसको करने पूरा | ||
− | + | काल द्वीप पर | |
नए-नए सुर-ताल हमें अब | नए-नए सुर-ताल हमें अब | ||
− | सूझ रहे हैं! | + | सूझ रहे हैं ! |
</poem> | </poem> |
22:17, 25 मई 2011 के समय का अवतरण
ज़रा सुनो तो
घर-घर में अब गीत हमारे
गूँज रहे हैं !
यहाँ चिता पर हम लेटे
हैं धुआँ हो रहे
और देह के कष्ट हमारे
सभी खो रहे
पार मृत्यु के
हम जीवन की नई पहेली
बूझ रहे हैं !
मंत्र रचे थे
हमने धरती के सुहाग के
जो साँसों में दहती हर पल
उसी आग के
उन्हीं अनूठे
मंत्रों से सब नए सूर्य को
पूज रहे हैं !
अंतिम गीत हमारा यह
रह गया अधूरा
हाँ, कल लौटेंगे हम
इसको करने पूरा
काल द्वीप पर
नए-नए सुर-ताल हमें अब
सूझ रहे हैं !