भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ज़रा सुनो तो / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार= कुमार रवींद्र  
 
|रचनाकार= कुमार रवींद्र  
 +
|संग्रह=और...हमने सन्धियाँ कीं / कुमार रवींद्र
 
}}
 
}}
 
{{KKCatNavgeet}}
 
{{KKCatNavgeet}}
पंक्ति 7: पंक्ति 8:
 
ज़रा सुनो तो
 
ज़रा सुनो तो
 
घर-घर में अब गीत हमारे
 
घर-घर में अब गीत हमारे
गूँज रहे हैं!
+
गूँज रहे हैं !
  
 
यहाँ चिता पर हम लेटे
 
यहाँ चिता पर हम लेटे
पंक्ति 16: पंक्ति 17:
 
पार मृत्यु के
 
पार मृत्यु के
 
हम जीवन की नई पहेली
 
हम जीवन की नई पहेली
बूझ रहे हैं!
+
बूझ रहे हैं !
  
 
मंत्र रचे थे
 
मंत्र रचे थे
पंक्ति 25: पंक्ति 26:
 
उन्हीं अनूठे
 
उन्हीं अनूठे
 
मंत्रों से सब नए सूर्य को
 
मंत्रों से सब नए सूर्य को
पूज रहे हैं!
+
पूज रहे हैं !
  
 
अंतिम गीत हमारा यह
 
अंतिम गीत हमारा यह
पंक्ति 32: पंक्ति 33:
 
इसको करने पूरा
 
इसको करने पूरा
  
काला द्वीप पर
+
काल द्वीप पर
 
नए-नए सुर-ताल हमें अब
 
नए-नए सुर-ताल हमें अब
सूझ रहे हैं!
+
सूझ रहे हैं !
 
</poem>
 
</poem>

22:17, 25 मई 2011 के समय का अवतरण

ज़रा सुनो तो
घर-घर में अब गीत हमारे
गूँज रहे हैं !

यहाँ चिता पर हम लेटे
हैं धुआँ हो रहे
और देह के कष्ट हमारे
सभी खो रहे

पार मृत्यु के
हम जीवन की नई पहेली
बूझ रहे हैं !

मंत्र रचे थे
हमने धरती के सुहाग के
जो साँसों में दहती हर पल
उसी आग के

उन्हीं अनूठे
मंत्रों से सब नए सूर्य को
पूज रहे हैं !

अंतिम गीत हमारा यह
रह गया अधूरा
हाँ, कल लौटेंगे हम
इसको करने पूरा

काल द्वीप पर
नए-नए सुर-ताल हमें अब
सूझ रहे हैं !