भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"खुशी का चेहरा / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार मुकुल |संग्रह=परिदृश्यक के भीतर }} {{KKCatKavita‎}} <p…)
 
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 6 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=कुमार मुकुल
 
|रचनाकार=कुमार मुकुल
|संग्रह=परिदृश्यक के भीतर
 
 
}}
 
}}
{{KKCatKavita‎}}
+
{{KKPustak
<poem>
+
|चित्र=Khushi-ka-chehra-kumar-mukul.jpg
खुशी को देखा है तुमने क्या् कभी
+
|नाम=खुशी का चेहरा
श्रम की गांठें होती हैं उसके हाथों में
+
|रचनाकार=[[कुमार मुकुल]]
उसके चेहरे पर होता है
+
|प्रकाशक=न्‍यू वर्ल्‍ड प्रकाशन, सी- 515, बुद्ध नगर, इंद्रपुरी, नई दिल्‍ली - 110012
तनाव-जनित कसाव
+
|वर्ष=2023
बिवाइयॉं होती हैं खुशी के तलुओं में
+
|भाषा=हिन्दी
शुद्ध मृदाजनित
+
|विषय=कविताएँ
 
+
|शैली=--
खुशी की
+
|पृष्ठ=128
हथेलियॉं देखी हैं तुमने
+
|ISBN=978-9393241573
पतली कड़ी लोचदार होती हैं वो
+
|विविध=--
जो अपनी गांठें
+
}}
छुपा लेती हैं अक्स र
+
* [[प्रस्‍तावना / अंचित]]
अपनी आत्माह में
+
* [[भूमिका / सुशील मानव]]
उस पर चोट करो
+
* [[शूटर - बूचर / कुमार मुकुल]]
देखों कैसे तिलमिलाकर
+
* [[दाएं हाथ का दर्द और रोटी बनाने की कला / कुमार मुकुल]]
उभर आती हैं गांठें
+
* [[अच्छे दिनों की शुरूआती खबरें / कुमार मुकुल]]
 
+
* [[खुशी का चेहरा / कुमार मुकुल]]
चेहरे के तनावजनित कसावों को
+
* [[वॉन गॉग की उर्सुला / कुमार मुकुल]]
छेड़ने से ही
+
* [[न्यायदंड / कुमार मुकुल]]
फूटती है हँसी
+
* [[पेड़े रामोतार के / कुमार मुकुल]]
ध्वतनि की तरह
+
* [[अनुपमा / कुमार मुकुल]]
 
+
* [[बारिश / कुमार मुकुल]]
तलुओं में ना हों तो
+
* [[प्यार - दो कविताएं / कुमार मुकुल]]
खुशी की स्मृ त्तियों में
+
* [[ऐ- अरी- ओ एंजलीना / कुमार मुकुल]]
जरूर होती हैं बिवाइयॉं
+
* [[जो हलाल नहीं होता / कुमार मुकुल]]
वहॉं झांकोगे
+
* [[तितलियां / कुमार मुकुल]]
तो फँसी मिटटी पाओगे
+
* [[दिल्ली में सुबह / कुमार मुकुल]]
उसे मत निकालना गर्त्तम से
+
* [[जिंदगी का तर्जुमा / कुमार मुकुल]]
रक्तम
+
* [[घर तो यह मेरा है / कुमार मुकुल]]
फूट पड़ेगा उनसे
+
* [[भूमिका / कुमार मुकुल]]
 
+
बड़े गहरे संबंध होते हैं
+
मिटटी के और रक्तो के
+
सगोत्रिय हैं दोनों
+
 
+
अपनी आत्माै को
+
जानते हो तुम
+
 
+
खुशी की आत्माो
+
खुशी के पैरों में निवास करती है
+
तब ही तो
+
इतनी तेज दौड़ती है खुशी
+
एक चेहरे से
+
दूसरे तीसरे व तमाम चेहरों पर
+
 
+
कभी खुश हुए हो तुम
+
श्रम
+
किया है क्या  कभी
+
दौड़े हो घास पर नंगे पॉंव
+
या फिर रेत पर
+
तो तुमने जरूर देखा होगा
+
कि कैसेट
+
हमारे पॉंवों में पैसी आत्मार
+
मिटटी से
+
चुगती है संवेदना
+
और कैसी तेजी से
+
हरी होती हैं
+
मस्तिष्क  की जड़ें
+
 
+
यहॉं से वहॉं उड़ान भरती
+
कैसी उन्मुनक्तत होती है हँसी
+
और निर्द्वांद्व कितनी
+
कि पकड़ में नहीं आती कभी
+
कैमरे में बंद करो
+
तो तस्वींरों से फूट पड़ती है
+
मन में बंद करो
+
तो आंखों से
+
 
+
क्यां करे वह
+
कि समय कम है उसके पास
+
और
+
असंख्य  हैं मनुष्यड
+
पीड़ा से बिंधे हुए
+
और सब तक जाना है उसे
+
 
+
खुशी की
+
ऑंखें होती हैं हिरणी सी
+
विस्फाहरित तुर्श साफ व सजल
+
छोटी सी पीड़ा भी
+
डुला देती है उसे
+
बह आता है जल
+
टप-टप-टप
+
 
+
बड़ा गम भी
+
पचा लेती है खुशी
+
कभी वही
+
गॉंठ बन जाती है
+
कैंसर की
+
 
+
पर श्रम की गॉंठ
+
जि‍यादा कड़ी होती है
+
गम की गॉंठ से
+
उसे गला देती है वह
+
 
+
खुशी जानती है
+
कि जियादा से जियादा
+
क्याि कर सकता है गम
+
उसे माटी कर सकता है
+
 
+
मिटटी की तो
+
बनी ही होती है खुशी
+
खिलौनों सी
+
उसके टूटने पर बच्चेै रोते हैं
+
कुम्हाूर नहीं रोता
+
वह जानता है श्रम को
+
पहचानता है खुशी को
+
गढ लेगा वह और और नयी
+
 
+
बारह से
+
पॉंव होते हैं खुशी के
+
मृगनयनी होती है
+
पर मृगमरीचिका नहीं देखती खुशी
+
 
+
पहले
+
कड़कती है बिजली
+
फिर होता है बज्रप्रहार
+
 
+
गरजता
+
 
+
जैसा आता है दुख
+
वैसा ही चला जाता है
+
पर चक्रवातों और
+
दुख की सूचनाओं की तरह
+
सन्नाीटे का
+
व्याामोह नहीं रचती खुशी
+
आना होता है
+
तो आ जाती है चुप-चाप
+
भंग करती सन्नांटा
+
 
+
आती है
+
तो जाती कहॉं है खुशी
+
रच-बस जाती है सुगंध सी
+
खिला देती है
+
पंखुडि़यों को
+
फिर बंद कहॉं होती हैं पंखुडि़यॉं
+
झर जाऍं चाहे
+
 
+
गमों में
+
सब छोड़ देते हैं दामन
+
तो बच्चेे
+
थाम लेते हैं खुशी को
+
और भरते हैं कुलॉंच
+
 
+
तब बड़े नाराज होते हैं
+
उन्हें  मारते हैं चॉंटे
+
और खुद रोते हैं
+
 
+
कुत्ते  की तरह
+
हमेशा
+
हमारे आगे-आगे
+
भागती है खुशी
+
बच्चोंह सी आगे आगे
+
साफ करती चलती है रास्ताआ
+
 
+
वह देखती है पहाड़
+
और चढ़ जाती है दौड़ कर
+
वहीं से बुलाती है
+
 
+
नदी को देखते ही
+
गुम हो जाती है
+
भँवरों में
+
 
+
जंगल को देखते
+
समा जाती है दूर तक
+
फिर कहीं से
+
करती है
+
कू-कू-कू
+
हम भागते हैं उसे पाने को
+
भागते चले जाते हैं
+
हॉंपते ढहते ढिलमिलाते
+
उसी की ओर
+
 
+
जंगल काटते हैं
+
और बनाते हैं पगडंडियॉं
+
भँवरों से लड़कर
+
बनाते हैं पुल
+
पत्थेरों को छॉंट
+
चढते हैं पहाड़
+
 
+
शायद इसी तरह बने हैं
+
तमाम रास्तेह सभ्य ता के
+
 
+
खुशी को ढूंढता
+
कोलंबस
+
अमरीका ढूंढ लेता है
+
 
+
एवरेस्टढ तक
+
हमें खुशी ले जाती है
+
 
+
चॉंद पर
+
जाती है खुशी
+
और कहती है
+
मंगल पर चलो
+
 
+
कभी
+
पीछे लौटकर नहीं देखती खुशी
+
स्मृ तिविहीन अतीत का रास्ताह
+
नहीं होता है उसका
+
डायनासोर मिलते हैं जहॉं
+
जो अपना भविष्य 
+
खुद खा जाते हैं।
+
</poem>
+

10:38, 31 अक्टूबर 2023 के समय का अवतरण

खुशी का चेहरा
Khushi-ka-chehra-kumar-mukul.jpg
रचनाकार कुमार मुकुल
प्रकाशक न्‍यू वर्ल्‍ड प्रकाशन, सी- 515, बुद्ध नगर, इंद्रपुरी, नई दिल्‍ली - 110012
वर्ष 2023
भाषा हिन्दी
विषय कविताएँ
विधा
पृष्ठ 128
ISBN 978-9393241573
विविध
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।