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"यात्रा / नवनीत पाण्डे" के अवतरणों में अंतर

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<poem>संबोधन से शुरु करते हुए अपनी यात्रा
 
<poem>संबोधन से शुरु करते हुए अपनी यात्रा
 
तुम पहुंचे मुझ तक
 
तुम पहुंचे मुझ तक
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किसी कुछ नहीं में ही
 
किसी कुछ नहीं में ही
 
कुछ.............  
 
कुछ.............  
आसमान
+
 
जब तुम देख रहे होते हो आसमान
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आसमान ही दिखता है तुम्हें
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वह ज़मीन
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कहीं नहीं होती आंखों में
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जो दिखाती है तुम्हें आसमान
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या तो तुम्हें पता नहीं है
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या फिर तुमने भुला दिया है
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आसमान के बिना
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ज़मीन
+
नहीं होती ज़मीन
+
ज़मीन के बिना
+
आसमान
+
नहीं होता आसमान।
+
 
   
 
   
 
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04:50, 28 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

संबोधन से शुरु करते हुए अपनी यात्रा
तुम पहुंचे मुझ तक
अपने अर्थ से
दे कर मुझे आकार
भर कर प्राण
खड़ा कर दिया अपने ही सामने कि
अब मैं भी करुं शुरु अपनी यात्रा
गढ़ूं अपना आकार
भरुं प्राण शब्दों में
अपने शब्दों से
एक प्रश्न पर कचोटता है निरंतर
क्यों अर्थ से ही होता है?
आरंभ-अंत,सबकुछ
क्यों नहीं करते हम जतन ढूंढने का
किसी कुछ नहीं में ही
कुछ.............