भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जीवन गाथा / मीना चोपड़ा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार=मीना चोपड़ा |
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} |
11:55, 4 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
उठती हैं
गिरती हैं
दर्पण हैं साँसें
प्रतिबिम्बों को
जन्म देती हैं ।
प्रतिबिम्ब, जो कई
चिन्ह बना देते हैं
दाग देते हैं प्रश्न-
कई दायरों पर
लिख देते हैं दायरे
कई सीनों पर ।
छप जाती है
समय के पन्नों पर
जीवन गाथा ।