भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"स्पर्श / मीना चोपड़ा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीना चोपड़ा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> यहीं से उठता है …) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 10: | पंक्ति 10: | ||
वह शोर | वह शोर | ||
वह नाद | वह नाद | ||
− | |||
− | |||
जो हिला देता है | जो हिला देता है |
11:57, 4 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
यहीं से उठता है
वह नगाड़ा
वह शोर
वह नाद
जो हिला देता है
पत्थरों को
झरनों को
आकाश को
वही सब जो मुझमें
धरा है ।
सिर्फ़ नहीं है
तो एक स्पर्श
जहाँ से
यह सब
उठता है!