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"परदे हटा के देखो / अशोक चक्रधर" के अवतरणों में अंतर

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कवि: अशोक चक्रधर
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ये घर है दर्द का घर, परदे हटा के देखो,
 
ये घर है दर्द का घर, परदे हटा के देखो,
 
 
ग़म हैं हंसी के अंदर, परदे हटा के देखो।
 
ग़म हैं हंसी के अंदर, परदे हटा के देखो।
 
  
 
लहरों के झाग ही तो, परदे बने हुए हैं,
 
लहरों के झाग ही तो, परदे बने हुए हैं,
 
 
गहरा बहुत समंदर, परदे हटा के देखो।
 
गहरा बहुत समंदर, परदे हटा के देखो।
 
  
 
चिड़ियों का चहचहाना, पत्तों का सरसराना,
 
चिड़ियों का चहचहाना, पत्तों का सरसराना,
 
 
सुनने की चीज़ हैं पर, परदे हटा के देखो।
 
सुनने की चीज़ हैं पर, परदे हटा के देखो।
 
  
 
नभ में उषा की रंगत, सूरज का मुस्कुराना
 
नभ में उषा की रंगत, सूरज का मुस्कुराना
 
 
ये ख़ुशगवार मंज़र, परदे हटा के देखो।
 
ये ख़ुशगवार मंज़र, परदे हटा के देखो।
 
  
 
अपराध और सियासत का इस भरी सभा में,
 
अपराध और सियासत का इस भरी सभा में,
 
 
होता हुआ स्वयंवर, परदे हटा के देखो।
 
होता हुआ स्वयंवर, परदे हटा के देखो।
 
  
 
इस ओर है धुआं सा, उस ओर है कुहासा,
 
इस ओर है धुआं सा, उस ओर है कुहासा,
 
 
किरणों की डोर बनकर, परदे हटा के देखो।
 
किरणों की डोर बनकर, परदे हटा के देखो।
 
  
 
ऐ चक्रधर ये माना, हैं ख़ामियां सभी में,
 
ऐ चक्रधर ये माना, हैं ख़ामियां सभी में,
 
 
कुछ तो मिलेगा बेहतर, परदे हटा के देखो।
 
कुछ तो मिलेगा बेहतर, परदे हटा के देखो।
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09:37, 28 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

ये घर है दर्द का घर, परदे हटा के देखो,
ग़म हैं हंसी के अंदर, परदे हटा के देखो।

लहरों के झाग ही तो, परदे बने हुए हैं,
गहरा बहुत समंदर, परदे हटा के देखो।

चिड़ियों का चहचहाना, पत्तों का सरसराना,
सुनने की चीज़ हैं पर, परदे हटा के देखो।

नभ में उषा की रंगत, सूरज का मुस्कुराना
ये ख़ुशगवार मंज़र, परदे हटा के देखो।

अपराध और सियासत का इस भरी सभा में,
होता हुआ स्वयंवर, परदे हटा के देखो।

इस ओर है धुआं सा, उस ओर है कुहासा,
किरणों की डोर बनकर, परदे हटा के देखो।

ऐ चक्रधर ये माना, हैं ख़ामियां सभी में,
कुछ तो मिलेगा बेहतर, परदे हटा के देखो।