भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तुम जागो मुस्काओ / हरीश भादानी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश भादानी |संग्रह=सपन की गली / हरीश भादानी }} {{KKCatK…)
 
 
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
 
नये भोर की वेला साथी -
 
नये भोर की वेला साथी -
 
तुम जागो - मुस्काओ ।
 
तुम जागो - मुस्काओ ।
 +
 
सपनों के विषधर समेट कर
 
सपनों के विषधर समेट कर
 
लौट चली विष-कन्या रजनी,
 
लौट चली विष-कन्या रजनी,
पंक्ति 28: पंक्ति 29:
 
भीनी गूँज भँवर की
 
भीनी गूँज भँवर की
 
उड़े पंछियों के कलरव सा -
 
उड़े पंछियों के कलरव सा -
तुम स्रुर साधो, गाओ।
+
तुम सुर साधो, गाओ।
  
 
नीचे का सूरज उठ आया
 
नीचे का सूरज उठ आया

14:55, 4 जुलाई 2010 के समय का अवतरण

नये भोर की वेला साथी -
तुम जागो - मुस्काओ ।

सपनों के विषधर समेट कर
लौट चली विष-कन्या रजनी,
अँधियारा सूने जादू की
बाँधे चला पिटारी आपनी।

बहुत दूर से आई है परभाती
निंदीया के दरवाजे ;
मोह बँधी पलकें उधार कर -
उठो और इठलाओ ।

देखो तो हो रहा गुलाबी,
उन्मन आसमान का आँगन
किरणें खोल रही धीरे से
लौट चली विष-कन्या रजनी,
सोई कलियों के मधुरानन

खेल रही है फूलों के आंचल में
भीनी गूँज भँवर की
उड़े पंछियों के कलरव सा -
तुम सुर साधो, गाओ।

नीचे का सूरज उठ आया
पर्वत की सीमा से ऊपर,
पीती है प्यासी हरियाली
धूप दूधिया हँस हँस जी भर।

सूनी राहों पर रुन झुन पायल की
चहल-पहल कोलाहल ;
कल की व्यथा भूल कर साथी -
नव आशा सहलाओ।