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"तुम जागो मुस्काओ / हरीश भादानी" के अवतरणों में अंतर
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उड़े पंछियों के कलरव सा - | उड़े पंछियों के कलरव सा - | ||
− | तुम | + | तुम सुर साधो, गाओ। |
नीचे का सूरज उठ आया | नीचे का सूरज उठ आया |
14:55, 4 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
नये भोर की वेला साथी -
तुम जागो - मुस्काओ ।
सपनों के विषधर समेट कर
लौट चली विष-कन्या रजनी,
अँधियारा सूने जादू की
बाँधे चला पिटारी आपनी।
बहुत दूर से आई है परभाती
निंदीया के दरवाजे ;
मोह बँधी पलकें उधार कर -
उठो और इठलाओ ।
देखो तो हो रहा गुलाबी,
उन्मन आसमान का आँगन
किरणें खोल रही धीरे से
लौट चली विष-कन्या रजनी,
सोई कलियों के मधुरानन
खेल रही है फूलों के आंचल में
भीनी गूँज भँवर की
उड़े पंछियों के कलरव सा -
तुम सुर साधो, गाओ।
नीचे का सूरज उठ आया
पर्वत की सीमा से ऊपर,
पीती है प्यासी हरियाली
धूप दूधिया हँस हँस जी भर।
सूनी राहों पर रुन झुन पायल की
चहल-पहल कोलाहल ;
कल की व्यथा भूल कर साथी -
नव आशा सहलाओ।