भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वह लड़की-एक / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem>सामने के झौंपड़े में रहने वाली वह लड़की अब सपने नहीं देखती। वह …)
 
छो (वह लड़की-एक / ओम पुरोहित कागद का नाम बदलकर वह लड़की-एक / ओम पुरोहित ‘कागद’ कर दिया गया है)
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<poem>सामने के झौंपड़े में
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’ 
 +
|संग्रह=आदमी नहीं है / ओम पुरोहित ‘कागद’
 +
}}
 +
{{KKCatKavita‎}}
 +
<Poem>
 +
सामने के झौंपड़े में
 
रहने वाली
 
रहने वाली
 
वह लड़की
 
वह लड़की

12:15, 31 अगस्त 2010 के समय का अवतरण

सामने के झौंपड़े में
रहने वाली
वह लड़की
अब
सपने नहीं देखती।
वह जानती है
कि, सपनों में भी
पुरूष की सत्ता
आ टपकती है
और कभी भी
उसके अबला होने का
लाभ उठा सकती है।
वह
यह भी जानती है
कि, सपना हो या यथार्थ
पुरूष की मांग पूरे बिना
उसकी मागं
कभी भी भरी नहीं जा सकती।
इसी लिए
अब वह
झौंपड़े में
निपट अकेली
यथार्थ को भोगती है
और सपने टालती हैं।