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"साँस / उदयन वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर
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− | मरने के ठीक पहले माँ की साँस की डोर छाती के भीतर बुरी तरह उलझ गयी है। उसे सुलझाने की जगह मैं उसका हाथ पकड़ लेता हूँ। रसोईघर के फहराते प्रकाश में मैं आग के सामने बैठा हूँ। माँ चूल्हे में फूलती रोटी को ताक रही है। सुदूर गहराते आकाश-मार्ग पर पिता के छूटे हुए पद-चिन्हों की तरह नक्षत्र | + | मरने के ठीक पहले माँ की साँस की डोर छाती के भीतर बुरी तरह उलझ गयी है। उसे सुलझाने की जगह मैं उसका हाथ पकड़ लेता हूँ। रसोईघर के फहराते प्रकाश में मैं आग के सामने बैठा हूँ। माँ चूल्हे में फूलती रोटी को ताक रही है। सुदूर गहराते आकाश-मार्ग पर पिता के छूटे हुए पद-चिन्हों की तरह नक्षत्र दिखाई देना शुरू हो जाते हैं। माथे की झुरियों में फँसे हाथों से नाना नींद की ओर सरक रहे हैं। |
अँधेरी छत पर खड़ी नानी पूरी ताकत से चीखती है: लो-लो वह चल दी। | अँधेरी छत पर खड़ी नानी पूरी ताकत से चीखती है: लो-लो वह चल दी। | ||
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09:04, 7 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
मरने के ठीक पहले माँ की साँस की डोर छाती के भीतर बुरी तरह उलझ गयी है। उसे सुलझाने की जगह मैं उसका हाथ पकड़ लेता हूँ। रसोईघर के फहराते प्रकाश में मैं आग के सामने बैठा हूँ। माँ चूल्हे में फूलती रोटी को ताक रही है। सुदूर गहराते आकाश-मार्ग पर पिता के छूटे हुए पद-चिन्हों की तरह नक्षत्र दिखाई देना शुरू हो जाते हैं। माथे की झुरियों में फँसे हाथों से नाना नींद की ओर सरक रहे हैं।
अँधेरी छत पर खड़ी नानी पूरी ताकत से चीखती है: लो-लो वह चल दी।