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09:49, 9 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
बहुत-कुछ अपने जैसा जन्मते ही जो एक आदमी
लीलाधर जगूड़ी नहीं था--वह मैं हूँ
मेरा जन्म ही कठोर कारागार है
--जन्म ही कठोर कारागार है
--मैं जन्म से ही कठोर कारागार में हूँ
क़ैदियों को भी प्यार की ज़रूरत है ये कब से कहा जा रहा है
पहले यहाँ मेरे पिता फँसे
--जब मैं आया वे जेलर बन गए
तब से मेरे दाएँ हाथ का काम
उनके बाएँ हाथ का खेल हो गया ।