"महानगर में सवेरा / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
कि चिमनियों-कार्ब्यूरेटरों से | कि चिमनियों-कार्ब्यूरेटरों से | ||
कूच कर चली | कूच कर चली | ||
− | धुओं की सशस्त्र सेनाएं | + | धुओं की सशस्त्र सेनाएं, |
गोरिल्ला रणनीति से | गोरिल्ला रणनीति से | ||
− | शामिल हो जाती हैं | + | शामिल हो जाती हैं-- |
सृष्टि के विरुद्ध | सृष्टि के विरुद्ध | ||
एक परिणामी युद्ध में | एक परिणामी युद्ध में | ||
पंक्ति 23: | पंक्ति 23: | ||
बांहों में सिसकते | बांहों में सिसकते | ||
ज्वारातंकित पूर्वी क्षितिज से | ज्वारातंकित पूर्वी क्षितिज से | ||
− | उग आता है | + | उग आता है-- |
− | टींसते फोड़े जैसा सूरज | + | टींसते फोड़े जैसा सूरज, |
जिसकी किरणें | जिसकी किरणें | ||
गाढ़े मवाद की तरह | गाढ़े मवाद की तरह | ||
पंक्ति 37: | पंक्ति 37: | ||
और ज़हरीले मवाद से | और ज़हरीले मवाद से | ||
मरणासन्न कर देती हैं | मरणासन्न कर देती हैं | ||
− | एक समूचा पुराण | + | एक समूचा पुराण, |
जो आज भी लिपटा हुआ है | जो आज भी लिपटा हुआ है | ||
− | चिथड़ी धोती की तरह | + | चिथड़ी धोती की तरह, |
तथाकथित श्यामवसना सरिता से | तथाकथित श्यामवसना सरिता से | ||
जो किसी बाल कन्हैया की | जो किसी बाल कन्हैया की | ||
चपल क्रीड़ाओं में | चपल क्रीड़ाओं में | ||
− | बहा करती थी कभी | + | बहा करती थी कभी-- |
छल-छल, कल-कल | छल-छल, कल-कल | ||
पंक्ति 49: | पंक्ति 49: | ||
सवेरा यहां | सवेरा यहां | ||
जो सरपट दौड़ता जाता है | जो सरपट दौड़ता जाता है | ||
− | हिंसक सड़कों पर | + | हिंसक सड़कों पर, |
हिनहिनाकर | हिनहिनाकर | ||
− | टपटपाकर | + | टपटपाकर-- |
अपनी दुम में बांधे | अपनी दुम में बांधे | ||
घिसटती-लिसढ़ती पागल भीड़ | घिसटती-लिसढ़ती पागल भीड़ | ||
और मोटरगाड़ियों का अटूट रेला | और मोटरगाड़ियों का अटूट रेला | ||
और जा-छिपता है | और जा-छिपता है | ||
− | दुर्घटनाओं के अस्तबल में | + | दुर्घटनाओं के अस्तबल में, |
ताकि वह ग्रास न बन जाए | ताकि वह ग्रास न बन जाए | ||
किरणों में छिपे घातक इरादे का | किरणों में छिपे घातक इरादे का | ||
− | + | जो रिमोट कंट्रोल से नियंत्रित है | |
सूर्य के हाथों | सूर्य के हाथों | ||
जिसे आतंकवादी बनाया है-- | जिसे आतंकवादी बनाया है-- | ||
पंक्ति 68: | पंक्ति 68: | ||
उस आदमखोर को | उस आदमखोर को | ||
दबोचने झपट पड़ते हैं | दबोचने झपट पड़ते हैं | ||
− | व्याघ्र किरणों के पंजे | + | व्याघ्र किरणों के पंजे, |
जबकि हर महानागरिक | जबकि हर महानागरिक | ||
धमाकों की उम्मीद लिए | धमाकों की उम्मीद लिए | ||
पंक्ति 77: | पंक्ति 77: | ||
नंगी होने से उल्लासित | नंगी होने से उल्लासित | ||
अंगीठीनुमा औरतों से | अंगीठीनुमा औरतों से | ||
− | अपनी कठुआई यौन कुंठाएं सेंकता है | + | अपनी कठुआई यौन कुंठाएं सेंकता है-- |
अपनी सेकेंडहैंड पैंट की फटी जेबों में | अपनी सेकेंडहैंड पैंट की फटी जेबों में | ||
रोटी, कपड़ा, मकान टटोलते हुए | रोटी, कपड़ा, मकान टटोलते हुए | ||
पंक्ति 83: | पंक्ति 83: | ||
उस कुंठाजीवी के लिए | उस कुंठाजीवी के लिए | ||
सवेरा क्या है? | सवेरा क्या है? | ||
− | बस, एक जोरदार सूखी छींक है | + | बस, एक जोरदार सूखी छींक है, |
जो उसकी नासिका की ट्रैफिक खोल | जो उसकी नासिका की ट्रैफिक खोल | ||
ताजे निकोटीनी धुओं की आवाजाही | ताजे निकोटीनी धुओं की आवाजाही | ||
निष्कंटक बना देती है | निष्कंटक बना देती है | ||
और तब, वह | और तब, वह | ||
− | किसी दुर्घटना-स्थल पर | + | किसी दुर्घटना-स्थल पर |
− | अभेद्य भीड़ से निकल जाने जैसा | + | जमा अभेद्य भीड़ से |
+ | निकल जाने जैसा | ||
हलका-फुलका महसूस करता है | हलका-फुलका महसूस करता है | ||
क्योंकि वह जानता है कि | क्योंकि वह जानता है कि | ||
सुबह के धमाके से गुज़रना | सुबह के धमाके से गुज़रना | ||
− | + | रेडलाइट पर दौड़कर | |
− | सड़क पार करने जैसा जोखिम भरा है | + | सड़क पार करने जैसा जोखिम भरा है, |
जबकि सवेरे की आवभगत करते | जबकि सवेरे की आवभगत करते | ||
− | पोस्टरों से रिसते रज से | + | पोस्टरों से |
+ | रिसते रज से | ||
नाबालिग लड़कियां | नाबालिग लड़कियां | ||
समय को ठेंगा दिखा | समय को ठेंगा दिखा | ||
सिर से पैर तक | सिर से पैर तक | ||
इतनी सेक्सी हो जाती हैं कि | इतनी सेक्सी हो जाती हैं कि | ||
− | पुलिस उनके | + | पुलिस उनके जननांगों से भी |
आर.डी.एक्स. बरामद कर लेती है | आर.डी.एक्स. बरामद कर लेती है | ||
पंक्ति 111: | पंक्ति 113: | ||
पसारना चाहता है कि | पसारना चाहता है कि | ||
'वीआईपियों' की इम्पोर्टिड कारें | 'वीआईपियों' की इम्पोर्टिड कारें | ||
− | + | उनका रास्ता जाम कर देती हैं | |
− | + | जबकि ट्रैफिक खुलने की उम्मीद में | |
मरीज़ दम तोड़ देता है | मरीज़ दम तोड़ देता है | ||
और किसी के नाम की सुपारी लिए भेड़िए | और किसी के नाम की सुपारी लिए भेड़िए | ||
अपने मेमने दबोच लेते हैं. | अपने मेमने दबोच लेते हैं. |
14:09, 3 अगस्त 2010 के समय का अवतरण
महानगर में सवेरा
अभी निशा-भ्रमित धुओं पर
दागे जा रहे होते हैं
तेजाबी ओस
कि चिमनियों-कार्ब्यूरेटरों से
कूच कर चली
धुओं की सशस्त्र सेनाएं,
गोरिल्ला रणनीति से
शामिल हो जाती हैं--
सृष्टि के विरुद्ध
एक परिणामी युद्ध में
तभी, आहत आसमान की
बांहों में सिसकते
ज्वारातंकित पूर्वी क्षितिज से
उग आता है--
टींसते फोड़े जैसा सूरज,
जिसकी किरणें
गाढ़े मवाद की तरह
फैलने लगती हैं--
सड़कों, राजभवनों
और झुराए मधुछत्तों जैसे
इमारतों तक
और बहने लगती हैं
रोगाणुओं-कीटाणुओं से दबी
और मृत्यु-भय से हदसी
जमुना की रुग्ण शिराओं में
और ज़हरीले मवाद से
मरणासन्न कर देती हैं
एक समूचा पुराण,
जो आज भी लिपटा हुआ है
चिथड़ी धोती की तरह,
तथाकथित श्यामवसना सरिता से
जो किसी बाल कन्हैया की
चपल क्रीड़ाओं में
बहा करती थी कभी--
छल-छल, कल-कल
ऐसा होता है
सवेरा यहां
जो सरपट दौड़ता जाता है
हिंसक सड़कों पर,
हिनहिनाकर
टपटपाकर--
अपनी दुम में बांधे
घिसटती-लिसढ़ती पागल भीड़
और मोटरगाड़ियों का अटूट रेला
और जा-छिपता है
दुर्घटनाओं के अस्तबल में,
ताकि वह ग्रास न बन जाए
किरणों में छिपे घातक इरादे का
जो रिमोट कंट्रोल से नियंत्रित है
सूर्य के हाथों
जिसे आतंकवादी बनाया है--
निरीह बस्तियों को
खुराक बनाने वाली
आदमखोर महानगर की साजिशों ने,
तदनंतर--
उस आदमखोर को
दबोचने झपट पड़ते हैं
व्याघ्र किरणों के पंजे,
जबकि हर महानागरिक
धमाकों की उम्मीद लिए
रेलवे प्लेटफार्मों पर
बाज़ारों, चौराहों, पार्कों में
सपनों की कच्ची फसल को
जागती आँखों से चरता है,
नंगी होने से उल्लासित
अंगीठीनुमा औरतों से
अपनी कठुआई यौन कुंठाएं सेंकता है--
अपनी सेकेंडहैंड पैंट की फटी जेबों में
रोटी, कपड़ा, मकान टटोलते हुए
उस कुंठाजीवी के लिए
सवेरा क्या है?
बस, एक जोरदार सूखी छींक है,
जो उसकी नासिका की ट्रैफिक खोल
ताजे निकोटीनी धुओं की आवाजाही
निष्कंटक बना देती है
और तब, वह
किसी दुर्घटना-स्थल पर
जमा अभेद्य भीड़ से
निकल जाने जैसा
हलका-फुलका महसूस करता है
क्योंकि वह जानता है कि
सुबह के धमाके से गुज़रना
रेडलाइट पर दौड़कर
सड़क पार करने जैसा जोखिम भरा है,
जबकि सवेरे की आवभगत करते
पोस्टरों से
रिसते रज से
नाबालिग लड़कियां
समय को ठेंगा दिखा
सिर से पैर तक
इतनी सेक्सी हो जाती हैं कि
पुलिस उनके जननांगों से भी
आर.डी.एक्स. बरामद कर लेती है
इतना कुछ होता है तब
वियाग्रा से देर तक उन्मत्त जब
पेंशनभोगियों के लिए
सवेरा अखबारों से फूटकर
राजमार्गों तक पिलपिलाकर
पसारना चाहता है कि
'वीआईपियों' की इम्पोर्टिड कारें
उनका रास्ता जाम कर देती हैं
जबकि ट्रैफिक खुलने की उम्मीद में
मरीज़ दम तोड़ देता है
और किसी के नाम की सुपारी लिए भेड़िए
अपने मेमने दबोच लेते हैं.