भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रूप दिखावत सरबस लूटै / भारतेंदु हरिश्चंद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र |संग्रह=नये जमाने की मुकर…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) छो ("रूप दिखावत सरबस लूटै / भारतेंदु हरिश्चंद्र" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<poem> | <poem> | ||
रूप दिखावत सरबस लूटै । | रूप दिखावत सरबस लूटै । | ||
− | ::: | + | :::फंदे मैं जो पड़ै न छूटै । |
कपट कटारी जिय मैं हुलिस । | कपट कटारी जिय मैं हुलिस । | ||
:::क्यों सखि सज्जन नहिं सखि पुलिस । | :::क्यों सखि सज्जन नहिं सखि पुलिस । | ||
</poem> | </poem> |
12:34, 12 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
रूप दिखावत सरबस लूटै ।
फंदे मैं जो पड़ै न छूटै ।
कपट कटारी जिय मैं हुलिस ।
क्यों सखि सज्जन नहिं सखि पुलिस ।