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"पत्नी-१. गृह प्रवेश पर / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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           थामे-थामे  
 
           थामे-थामे  
 
प्रतीक्षा की अनमोल पूंजी से
 
प्रतीक्षा की अनमोल पूंजी से
कमाया अपने सपनों का घर उसने  
+
    कमाया अपने  
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    सपनों का घर उसने  
  
घर में अतिथि-प्रवेश का बरामदा नहीं  
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घर में अतिथि-प्रवेश का  
कहीं सूर्य-नमस्कार का आँगन नहीं  
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      बरामदा नहीं  
कपड़े सुखाने का बारजा नहीं
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कहीं सूर्य-नमस्कार का  
 +
        आँगन नहीं  
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कपड़े सुखाने का
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        बारजा नहीं
 
शौचालय और गुशलखाना नहीं,
 
शौचालय और गुशलखाना नहीं,
 
यानी, शयनकक्ष में नहाना
 
यानी, शयनकक्ष में नहाना
 
बैठक के उदार कोने में शौचना
 
बैठक के उदार कोने में शौचना
उससे सटे पथरीले गच पर खाना पकाना
+
उससे सटे पथरीले गच पर  
 +
        खाना पकाना
 
और वहीं पइयां बैठ
 
और वहीं पइयां बैठ
मजे से जीमना
+
        मजे से जीमना
  
उसने कोने-कोने मुआयना किया
+
उसने कोने-कोने  
नाक-भौंह सिकोड़ी
+
  मुआयना किया
माथे पर बल दिया,
+
  नाक-भौंह सिकोड़ी
सीलती दुछत्ती देखी
+
  माथे पर बल दिया,
जुबान पर च्च च्च चटकाया
+
  सीलती दुछत्ती देखी
सुर खुशामदी लहजे में  
+
    जुबान पर च्च च्च चटकाया
पति को देखा, मुस्कराई
+
फिर, खुशामदी लहजे में  
अंधी खिड़की टटोल, फिसकारी मारी
+
    पति को देखा, मुस्कराई,
और नीची छत देख
+
अंधी खिड़की टटोल  
सिर बचाया, मुंह बिचकाया
+
  फिसकारी मारी
फिर, लामकुत बेटे को बुला,
+
  और नीची छत देख
 +
  सिर बचाया, मुंह बिचकाया
 +
फिर, लमकुट बेटे को बुला,
 
छत से उसके सिर की दूरी नापी,
 
छत से उसके सिर की दूरी नापी,
खैर खुद को आश्वस्त पाया,  
+
  खैर, खुद को आश्वस्त पाया,  
न कोई अफसोस जताया
+
  न कोई अफसोस जताया
न घर के, घर होने पर आंसू बहाया,
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न घर के, घर होने पर  
उस पल अपने 'उनको' खूब फुसलाया
+
  आंसू बहाया,
अपेन बाजू में  
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उस पल अपने 'उनको'  
साधिकार बुलाया
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  खूब फुसलाया
प्यार जताया  
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  अपने बाजू में  
 +
  साधिकार बुलाया
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  प्यार जताया  
  
 
पति पालतू कुत्ता बन  
 
पति पालतू कुत्ता बन  
दुम हिलाते आया उस दम
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  दुम हिलाते आया उस दम
उसका उत्साह नहीं हुआ कम,
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  उसका उत्साह नहीं हुआ कम,
 
पीछे-पीछे पंडिज्जी आए
 
पीछे-पीछे पंडिज्जी आए
आम्र पत्तियों के झालर भी लाए  
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आम्र पत्तियों के झालर भी लाए  
आसन लगाई, पूजा के सामान बिछाए
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  आसन लगाई, पूजा के सामान बिछाए
हल्दी-चावल से अल्पना सजाई
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  हल्दी-चावल से अल्पना सजाई
ताम्र कमंडल पर विधिवत दीपक जलाया
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    ताम्र कमंडल पर विधिवत दीपक जलाया
धूप-दसांग सुलगाए, अगरबत्ती महक्काई
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    धूप-दसांग सुलगाए, अगरबत्ती महकाई
अग्निवेदी स्थापित की
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      अग्निवेदी स्थापित की
 
फिर, मन्त्र उच्चारे, श्लोक गाए
 
फिर, मन्त्र उच्चारे, श्लोक गाए
शंख बजाए, जयघोष किए
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शंख बजाए, जयघोष किए
अर्थात धन-धान्य पूर्णता के
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  अर्थात धन-धान्य पूर्णता के
सारे कर्मकांड किए...
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  सारे कर्मकांड किए...
  
 
दम्पती पालथी मार बैठे रहे,
 
दम्पती पालथी मार बैठे रहे,
श्रद्धावत हाथ बांधे,
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श्रद्धावत हाथ बांधे,
विनय की प्रतिमूर्ति बने  
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  विनय की प्रतिमूर्ति बने,
पंडिज्जी के रोबट-सरीखे
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  पंडिज्जी के रोबट-सरीखे
कठपुतली बने रहे  
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    कठपुतली बने रहे  
  
 
आरती घुमाए जाने के बाद
 
आरती घुमाए जाने के बाद
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पत्नी गृह-स्वामिनी बनी  
 
पत्नी गृह-स्वामिनी बनी  
पड़ोस में उसकी धौंस जमी,
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पड़ोस में उसकी धौंस जमी,
प्रजाओं के नए चेहरों ने
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उसके मातहतों ने स्वीकार की,
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  उसके मातहतों ने स्वीकार की,
 
वह बुढ़ापे में फूलमती बनी
 
वह बुढ़ापे में फूलमती बनी
मन में बरसों से अंकुरित
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मन में बरसों से अंकुरित
घर का पौध
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  घर का पौध
आज सचमुच सिंचित हुआ
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  आज सचमुच सिंचित हुआ
पुष्पित और फलित हुआ.
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    पुष्पित और फलित हुआ.

13:44, 13 जुलाई 2010 के समय का अवतरण


पत्नी:गृह-प्रवेश पर

 
उम्र की बीहड़ सड़कों पर
          चलते-चलते
थकने पर धीरज की लाठी
          थामे-थामे
प्रतीक्षा की अनमोल पूंजी से
    कमाया अपने
    सपनों का घर उसने

घर में अतिथि-प्रवेश का
       बरामदा नहीं
कहीं सूर्य-नमस्कार का
        आँगन नहीं
कपड़े सुखाने का
        बारजा नहीं
शौचालय और गुशलखाना नहीं,
यानी, शयनकक्ष में नहाना
बैठक के उदार कोने में शौचना
उससे सटे पथरीले गच पर
        खाना पकाना
और वहीं पइयां बैठ
        मजे से जीमना

उसने कोने-कोने
   मुआयना किया
   नाक-भौंह सिकोड़ी
   माथे पर बल दिया,
   सीलती दुछत्ती देखी
    जुबान पर च्च च्च चटकाया
फिर, खुशामदी लहजे में
    पति को देखा, मुस्कराई,
अंधी खिड़की टटोल
   फिसकारी मारी
   और नीची छत देख
   सिर बचाया, मुंह बिचकाया
फिर, लमकुट बेटे को बुला,
छत से उसके सिर की दूरी नापी,
   खैर, खुद को आश्वस्त पाया,
   न कोई अफसोस जताया
न घर के, घर होने पर
   आंसू बहाया,
उस पल अपने 'उनको'
  खूब फुसलाया
  अपने बाजू में
  साधिकार बुलाया
  प्यार जताया

पति पालतू कुत्ता बन
  दुम हिलाते आया उस दम
  उसका उत्साह नहीं हुआ कम,
पीछे-पीछे पंडिज्जी आए
 आम्र पत्तियों के झालर भी लाए
  आसन लगाई, पूजा के सामान बिछाए
   हल्दी-चावल से अल्पना सजाई
    ताम्र कमंडल पर विधिवत दीपक जलाया
     धूप-दसांग सुलगाए, अगरबत्ती महकाई
      अग्निवेदी स्थापित की
फिर, मन्त्र उच्चारे, श्लोक गाए
 शंख बजाए, जयघोष किए
  अर्थात धन-धान्य पूर्णता के
   सारे कर्मकांड किए...

दम्पती पालथी मार बैठे रहे,
 श्रद्धावत हाथ बांधे,
  विनय की प्रतिमूर्ति बने,
   पंडिज्जी के रोबट-सरीखे
    कठपुतली बने रहे

आरती घुमाए जाने के बाद
प्रसाद-वितरण वितरण हुआ,
मेहमानों ने भर-पेट खाना खाया
दम्पती भी उनके आशीर्वचनों से अघाए

पत्नी गृह-स्वामिनी बनी
 पड़ोस में उसकी धौंस जमी,
  प्रजाओं के नए चेहरों ने
   उसके मातहतों ने स्वीकार की,
वह बुढ़ापे में फूलमती बनी
 मन में बरसों से अंकुरित
  घर का पौध
   आज सचमुच सिंचित हुआ
    पुष्पित और फलित हुआ.