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"जुलूस का जलसा / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर

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लानत है, लानत, विराग को राग सुहाए,
 
लानत है, लानत, विराग को राग सुहाए,
साधू हो कर मांस मनुज का भर मुँह खाए ।
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साधू हो कर मांस मनुज का भरमुँह खाए ।
 
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19:31, 20 जुलाई 2010 के समय का अवतरण

नागों का वह नंगा नाच और वह चिमटा
भाँजते हुए जाना, फिर तान कर डराना
जनसाधारण को, समूह जिन का था सिमटा
आसपास कौतूहल से, भयभीत कराना
और भगाना, प्रेतरूप से उन्हें छराना,
हौदा कसे हुए हाथी, सजे हुए घोड़े,
ऊँट, वेश रचना, पैंतरे, नवीन तराना,
वह विरागियों के जुलूस का जलसा, थोड़े
में इंद्र का अखाड़ा, कोई पी कर छोड़े
जिसे नहीं वह मद पल पल में छलक रहा था,
लोग भभर कर भागे, कितनों ने दम तोड़े
वेश बनाए निशाचरी छल ललक रहा था ।

लानत है, लानत, विराग को राग सुहाए,
साधू हो कर मांस मनुज का भरमुँह खाए ।