भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मंत्र / लीलाधर मंडलोई" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
					
										
					
					 (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लीलाधर मंडलोई |संग्रह=एक बहुत कोमल तान / लीलाधर …)  | 
				|||
| पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna  | {{KKRachna  | ||
|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई  | |रचनाकार=लीलाधर मंडलोई  | ||
| − | |संग्रह=  | + | |संग्रह=लिखे में दुक्ख / लीलाधर मंडलोई  | 
}}  | }}  | ||
<poem>  | <poem>  | ||
| − | + | श्रमिक होती हैं मधुमक्खियां   | |
| − | + | फूलों से पराग   | |
| − | + | और मकरंद करती हैं इकट्ठा   | |
| + | अपने टांगों में बनी   | ||
| + | उस टोकरी में   | ||
| + | जो दीखती नहीं   | ||
| − | + | मधुमक्खियां तैयार   | |
| − | + | करती हैं शहद   | |
| − | + | और करती हैं रक्षा   | |
| + | बाहरी आक्रमण से उसकी   | ||
| + | |||
| + | घिरे हुए हैं हम अनेक दुश्मनों से   | ||
| + | और रक्षा नहीं कर पाते   | ||
| + | |||
| + | हमने मधुमक्खियों से सीखा नहीं यह मंत्र  | ||
11:49, 29 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
श्रमिक होती हैं मधुमक्खियां 
फूलों से पराग 
और मकरंद करती हैं इकट्ठा 
अपने टांगों में बनी 
उस टोकरी में 
जो दीखती नहीं 
मधुमक्खियां तैयार 
करती हैं शहद 
और करती हैं रक्षा 
बाहरी आक्रमण से उसकी 
घिरे हुए हैं हम अनेक दुश्मनों से 
और रक्षा नहीं कर पाते 
हमने मधुमक्खियों से सीखा नहीं यह मंत्र
	
	