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"कविता-7 / रवीन्द्रनाथ ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

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(The beginning by Rabindranath tagore)
 
 
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'''आरम्भ'''
  
कुलदेवी की प्रतिमा में भी, तुमको ही पूजा है मैंने<br />
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मेरी आशा और प्रेम में, मेरे और माँ के जीवन में<br />
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कुछ रोती कुछ हँसती बोली, चिपका कर अपनी छाती से
सदा रही जो और रहेगी, अमर स्वामिनी अपने घर की<br />
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छिपी हुई थी उर में मेरे, मन की सोती इच्छा बनकर
उसी गृहात्मा की गोदी में, तुम्ही पली हो युगों युगों से<br />
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बचपन के खेलों में भी तुम, थी प्यारी-सी गुड़िया बनकर
विकसित होती हृदय कली की, पंखुडियां जब खिल रही थी<br />
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मिट्टी की उस देव मूर्ति में, तुम्हे गढ़ा करती बेटी मैं
मंद सुगंध बनी सौरभ सी, तुम ही तो चहु ओर फिरी थी<br />
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प्रतिदिन प्रातः यही क्रम चलता, बनती और मिलती मिट्टी में
सूर्योदय की पूर्व छटा सी, तव कोमलता ही तो थी वह<br />
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यौवन वेला तरुणांगों में, कमिलिनी सी जो फूल रही थी<br />
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स्वर्ग प्रिये उषा समजाते, जगजीवन सरिता संग बहती<br />
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कुलदेवी की प्रतिमा में भी, तुमको ही पूजा है मैंने
तव जीवन नौका अब आकर, मेरे ह्रदय घाट  पर रूकती<br />
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मेरी आशा और प्रेम में, मेरे और माँ के जीवन में
मुखकमल निहार रही तेरा, डूबती रहस्योदधि में मैं<br />
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सदा रही जो और रहेगी, अमर स्वामिनी अपने घर की
निधि अमूल्य जगती की थी जो, हुई आज वह मेरी है<br />
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उसी गृहात्मा की गोदी में, तुम्ही पली हो युगों-युगों से
खो जाने के भय के कारण, कसकर छाती के पास रखूं<br />
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किस चमत्कार से जग वैभव, बाँहों में आया यही कहूं?<br />
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मंद सुगंध बनी सौरभ-सी, तुम ही तो चँहु ओर फिरी थीं
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सूर्योदय की पूर्व छटा-सी, तब कोमलता ही तो थी वह
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यौवन वेला तरुणांगों में, कमिलिनी-सी जो फूल रही थी
  
-रबिन्द्र नाथ ठाकुर की अंग्रेजी कविता "The beginning" से अनूदित <br />
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स्वर्ग प्रिये उषा समजाते, जगजीवन सरिता संग बहती
-- अत्रि 'गरुण'
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तब जीवन नौका अब आकर, मेरे ह्रदय घाट  पर रूकती
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मुखकमल निहार रही तेरा, डूबती रहस्योदधि में मैं
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निधि अमूल्य जगती की थी जो, हुई आज वह मेरी है
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खो जाने के भय के कारण, कसकर छाती के पास रखूँ
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किस चमत्कार से जग वैभव, बाँहों में आया यही कहूँ?
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-रवीन्द्रनाथ ठाकुर की अंग्रेज़ी कविता "The beginning" का अनुवाद
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'''मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद : अत्रि 'गरुण''''
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20:37, 21 जुलाई 2010 के समय का अवतरण

आरम्भ

कहाँ मिली मैं ? कहाँ से आई ? यह पूछा जब शिशु ने माँ से
कुछ रोती कुछ हँसती बोली, चिपका कर अपनी छाती से
छिपी हुई थी उर में मेरे, मन की सोती इच्छा बनकर
बचपन के खेलों में भी तुम, थी प्यारी-सी गुड़िया बनकर
मिट्टी की उस देव मूर्ति में, तुम्हे गढ़ा करती बेटी मैं
प्रतिदिन प्रातः यही क्रम चलता, बनती और मिलती मिट्टी में

कुलदेवी की प्रतिमा में भी, तुमको ही पूजा है मैंने
मेरी आशा और प्रेम में, मेरे और माँ के जीवन में
सदा रही जो और रहेगी, अमर स्वामिनी अपने घर की
उसी गृहात्मा की गोदी में, तुम्ही पली हो युगों-युगों से
विकसित होती हृदय कली की, पंखुडियाँ जब खिल रही थीं
मंद सुगंध बनी सौरभ-सी, तुम ही तो चँहु ओर फिरी थीं
सूर्योदय की पूर्व छटा-सी, तब कोमलता ही तो थी वह
यौवन वेला तरुणांगों में, कमिलिनी-सी जो फूल रही थी

स्वर्ग प्रिये उषा समजाते, जगजीवन सरिता संग बहती
तब जीवन नौका अब आकर, मेरे ह्रदय घाट पर रूकती
मुखकमल निहार रही तेरा, डूबती रहस्योदधि में मैं
निधि अमूल्य जगती की थी जो, हुई आज वह मेरी है
खो जाने के भय के कारण, कसकर छाती के पास रखूँ
किस चमत्कार से जग वैभव, बाँहों में आया यही कहूँ?

-रवीन्द्रनाथ ठाकुर की अंग्रेज़ी कविता "The beginning" का अनुवाद
मूल अंग्रेज़ी से अनुवाद : अत्रि 'गरुण'