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"मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं / गोपालदास "नीरज"" के अवतरणों में अंतर

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मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ
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तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो
  
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हैं फूल रोकते, कांटे मुझे चलाते
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मरुस्थल, पहाड़ चलने की चाह बढ़ाते
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सच कहता हूँ जब मुश्किलें ना होती हैं
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मेरे पग तब चलने में भी शर्माते
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मेरे संग चलने लगें हवायें जिससे
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तुम पथ के कण-कण को तूफ़ान करो
  
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मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ
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तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो
  
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
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अंगार अधर पे धर मैं मुस्काया हूँ
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
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मैं मरघट से ज़िन्दगी बुला के लाया हूँ
 
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हूँ आँख-मिचौनी खेल चला किस्मत से
हैं फ़ूल रोकते, काटें मुझे चलाते..
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सौ बार मृत्यु के गले चूम आया हूँ
मरुस्थल, पहाड चलने की चाह बढाते..
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सच कहता हूं जब मुश्किलें ना होती हैं..
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मेरे पग तब चलने मे भी शर्माते..
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मेरे संग चलने लगें हवायें जिससे..
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तुम पथ के कण-कण को तूफ़ान करो..
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मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
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तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
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अंगार अधर पे धर मैं मुस्काया हूं..
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मैं मर्घट से ज़िन्दगी बुला के लाया हूं..
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हूं आंख-मिचौनी खेल चला किस्मत से..
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सौ बार म्रत्यु के गले चूम आया हूं..
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है नहीं स्वीकार दया अपनी भी..
 
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तुम मत मुझपर कोई एह्सान करो..
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तुम मत मुझ पर न कोई एहसान करो
 
   
 
   
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
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मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
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तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो
  
शर्म के जल से राह सदा सिंचती है..
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श्रम के जल से राह सदा सिंचती है
गती की मशाल आंधी मैं ही हंसती है..
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गति की मशाल आंधी मैं ही हँसती है
शोलो से ही श्रिंगार पथिक का होता है..
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शोलों से ही शृंगार पथिक का होता है
मंजिल की मांग लहू से ही सजती है..
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मंज़िल की मांग लहू से ही सजती है
पग में गती आती है, छाले छिलने से..
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पग में गति आती है, छाले छिलने से
तुम पग-पग पर जलती चट्टान धरो..
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तुम पग-पग पर जलती चट्टान धरो
  
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
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मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
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तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो
  
फूलों से जग आसान नहीं होता है..
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फूलों से जग आसान नहीं होता है
रुकने से पग गतीवान नहीं होता है..
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अवरोध नहीं तो संभव नहीं प्रगती भी..
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है नाश जहां निर्मम वहीं होता है..
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है नाश जहाँ निर्माण वहीं होता है
मैं बसा सुकून नव-स्वर्ग “धरा” पर जिससे..
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मैं बसा सकूं नव-स्वर्ग "धरा" पर जिससे
तुम मेरी हर बस्ती वीरान करो..
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तुम मेरी हर बस्ती वीरान करो
  
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
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मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
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मैं पन्थी तूफ़ानों मे राह बनाता..
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मेरा दुनिया से केवल इतना नाता..
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मेरा दुनिया से केवल इतना नाता
वेह मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर..
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वह मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर
मैं ठोकर उसे लगाकर बढ्ता जाता..
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मैं ठोकर उसे लगा कर बढ़ता जाता
मैं ठुकरा सकूं तुम्हें भी हंसकर जिससे..
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मैं ठुकरा सकूँ तुम्हें भी हँसकर जिससे
तुम मेरा मन-मानस पाशाण करो..
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तुम मेरा मन-मानस पाषाण करो
  
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
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मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..
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तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो
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17:30, 5 मई 2023 के समय का अवतरण

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो

हैं फूल रोकते, कांटे मुझे चलाते
मरुस्थल, पहाड़ चलने की चाह बढ़ाते
सच कहता हूँ जब मुश्किलें ना होती हैं
मेरे पग तब चलने में भी शर्माते
मेरे संग चलने लगें हवायें जिससे
तुम पथ के कण-कण को तूफ़ान करो

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो

अंगार अधर पे धर मैं मुस्काया हूँ
मैं मरघट से ज़िन्दगी बुला के लाया हूँ
हूँ आँख-मिचौनी खेल चला किस्मत से
सौ बार मृत्यु के गले चूम आया हूँ
है नहीं स्वीकार दया अपनी भी..
तुम मत मुझ पर न कोई एहसान करो
 
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो

श्रम के जल से राह सदा सिंचती है
गति की मशाल आंधी मैं ही हँसती है
शोलों से ही शृंगार पथिक का होता है
मंज़िल की मांग लहू से ही सजती है
पग में गति आती है, छाले छिलने से
तुम पग-पग पर जलती चट्टान धरो

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो

फूलों से जग आसान नहीं होता है
रुकने से पग गतिवान नहीं होता है
अवरोध नहीं तो संभव नहीं प्रगति भी
है नाश जहाँ निर्माण वहीं होता है
मैं बसा सकूं नव-स्वर्ग "धरा" पर जिससे
तुम मेरी हर बस्ती वीरान करो

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो

मैं पंथी तूफ़ानों में राह बनाता
मेरा दुनिया से केवल इतना नाता
वह मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर
मैं ठोकर उसे लगा कर बढ़ता जाता
मैं ठुकरा सकूँ तुम्हें भी हँसकर जिससे
तुम मेरा मन-मानस पाषाण करो

मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूँ
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो