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"पर्वत प्रदेश में पावस / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर
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पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश, | पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश, | ||
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मेखलाकर पर्वत अपार | मेखलाकर पर्वत अपार | ||
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अपने सहस्त्र दृग-सुमन फाड़, | अपने सहस्त्र दृग-सुमन फाड़, | ||
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अवलोक रहा है बार-बार | अवलोक रहा है बार-बार | ||
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नीचे जल में निज महाकार, | नीचे जल में निज महाकार, | ||
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-जिसके चरणों में पला ताल | -जिसके चरणों में पला ताल | ||
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दर्पण सा फैला है विशाल! | दर्पण सा फैला है विशाल! | ||
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गिरि का गौरव गाकर झर-झर | गिरि का गौरव गाकर झर-झर | ||
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मद में लनस-नस उत्तेजित कर | मद में लनस-नस उत्तेजित कर | ||
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मोती की लडि़यों सी सुन्दर | मोती की लडि़यों सी सुन्दर | ||
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झरते हैं झाग भरे निर्झर! | झरते हैं झाग भरे निर्झर! | ||
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गिरिवर के उर से उठ-उठ कर | गिरिवर के उर से उठ-उठ कर | ||
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उच्चाकांक्षायों से तरूवर | उच्चाकांक्षायों से तरूवर | ||
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है झॉंक रहे नीरव नभ पर | है झॉंक रहे नीरव नभ पर | ||
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अनिमेष, अटल, कुछ चिंता पर। | अनिमेष, अटल, कुछ चिंता पर। | ||
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उड़ गया, अचानक लो, भूधर | उड़ गया, अचानक लो, भूधर | ||
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फड़का अपार वारिद के पर! | फड़का अपार वारिद के पर! | ||
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रव-शेष रह गए हैं निर्झर! | रव-शेष रह गए हैं निर्झर! | ||
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है टूट पड़ा भू पर अंबर! | है टूट पड़ा भू पर अंबर! | ||
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धँस गए धरा में सभय शाल! | धँस गए धरा में सभय शाल! | ||
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उठ रहा धुऑं, जल गया ताल! | उठ रहा धुऑं, जल गया ताल! | ||
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-यों जलद-यान में विचर-विचर | -यों जलद-यान में विचर-विचर | ||
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था इंद्र खेलता इंद्रजाल | था इंद्र खेलता इंद्रजाल | ||
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08:27, 13 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश,
पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश।
मेखलाकर पर्वत अपार
अपने सहस्त्र दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार,
-जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण सा फैला है विशाल!
गिरि का गौरव गाकर झर-झर
मद में लनस-नस उत्तेजित कर
मोती की लडि़यों सी सुन्दर
झरते हैं झाग भरे निर्झर!
गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षायों से तरूवर
है झॉंक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंता पर।
उड़ गया, अचानक लो, भूधर
फड़का अपार वारिद के पर!
रव-शेष रह गए हैं निर्झर!
है टूट पड़ा भू पर अंबर!
धँस गए धरा में सभय शाल!
उठ रहा धुऑं, जल गया ताल!
-यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल