भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"खुला आसमान / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: रचनाकारः सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" Category:कविताएँ [[Category:सूर्यकांत त्र...)
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
रचनाकारः [[सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKRachna
[[Category:सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]]
+
|रचनाकार= सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
 +
|संग्रह=अनामिका / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
 +
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
:::(गीत)
 +
बहुत दिनों बाद खुला आसमान!
 +
निकली है धूप, खुश हुआ जहान!
  
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
+
:दिखी दिशाएँ, झलके पेड़,
 +
चरने को चले ढोर--गाय-भैंस-भेड़,
 +
:खेलने लगे लड़के छेड़-छेड़--
 +
:लड़कियाँ घरों को कर भासमान!
  
बहुत दिनों बाद खुला आसमान!<br>
+
:लोग गाँव-गाँव को चले,
निकली है धूप, खुश हुआ जहान!<br><br>
+
कोई बाजार, कोई बरगद के पेड़ के तले
 +
:जाँघिया-लँगोटा ले, सँभले,
 +
:तगड़े-तगड़े सीधे नौजवान!
  
दिखी दिशाएँ, झलके पेड़,<br>
+
:पनघट में बड़ी भीड़ हो रही,
चरने को चले ढोर--गाय-भैंस-भेड़,<br>
+
नहीं ख्याल आज कि भीगेगी चूनरी,
खेलने लगे लड़के छेड़-छेड़,<br>
+
:बातें करती हैं वे सब खड़ी,
लड़कियाँ घरों को कर भासमान!<br><br>
+
:चलते हैं नयनों के सधे बाण!
 
+
</poem>
लोग गाँव-गाँव को चले, <br>
+
कोई बाजार, कोई बरगद के पेड़ के तले, <br>
+
जाँघिया-लँगोटा ले सँभले,<br>
+
तगड़े-तगड़े सीधे नौजवान!<br><br>
+
 
+
पनघट में बड़ी भीड़ हो रही,<br>
+
नहीं ख्याल आज कि भीगेगी चूनरी,<br>
+
बातें करती हैं वे सब खड़ी,<br>
+
चलते हैं नयनों के बाण!<br>
+

01:57, 11 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

(गीत)
बहुत दिनों बाद खुला आसमान!
निकली है धूप, खुश हुआ जहान!

दिखी दिशाएँ, झलके पेड़,
चरने को चले ढोर--गाय-भैंस-भेड़,
खेलने लगे लड़के छेड़-छेड़--
लड़कियाँ घरों को कर भासमान!

लोग गाँव-गाँव को चले,
कोई बाजार, कोई बरगद के पेड़ के तले
जाँघिया-लँगोटा ले, सँभले,
तगड़े-तगड़े सीधे नौजवान!

पनघट में बड़ी भीड़ हो रही,
नहीं ख्याल आज कि भीगेगी चूनरी,
बातें करती हैं वे सब खड़ी,
चलते हैं नयनों के सधे बाण!