Kumar suresh (चर्चा | योगदान) |
Kumar suresh (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
== मित्र मेरे | == मित्र मेरे | ||
− | poem>कहो | + | <poem>कहो |
क्या दिखाई देती है तुम्हे | क्या दिखाई देती है तुम्हे | ||
मेरी परतंत्रता | मेरी परतंत्रता | ||
पंक्ति 42: | पंक्ति 42: | ||
कभी कभी | कभी कभी | ||
− | </poem> == | + | </poem>poem> == |
23:03, 24 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
== मित्र मेरे
कहो
क्या दिखाई देती है तुम्हे
मेरी परतंत्रता
चारों ओर लिपटी
पसंद नापसंद
की जंजीरे
सुनते हो क्या
इनकी झनझनाहट
कभी कभी
क्या दिखाई देती है
अतृप्त इक्छाओं से चुनी
प्राचीरे
भग्नावसेस भरोसे
छुपने को कन्दराएँ
मेरी निर्जनता
क्या सुनते हो
मेरा सन्नाटा कभी कभी
क्या समझ पाते हो
भीतर बहुत दूर
एक कुण्ड अनाम
रीतता दिन ब दिन
अस्तित्व के लिए
मेरी छटपटअहट
क्या सुनते हो
मेरी कराह कभी कभी
कहो क्या मालूम है
मेरे भीतर
नीम अँधेरे कोनें में
छुप कर बैठे
वनमानुस का पता
खुद को सत्य के बहाने
बिठाना चाहता है
सिंहासन पर
क्या देखे उसके
बढे हुए नाखून
सुनी उसकी
गुर्राहट
कभी कभी